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और भी भक्त हैं हनुमानजी के !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-



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दिन : सोमवार, 16-8-10.
स्थान : हमारा घर.
समय : दोपहर साढ़े तीन बजे.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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कल की तुलना में हम कुछ भले-चंगे हो चुके थे पर ज्यादा कुछ नहीं हुआ था.
हम प्रतीक्षारत थे कि हनुमानजी आयें तो हम उनको अपनी दिनचर्या दिखायें और उनसे उस लड़की के सन्दर्भ में भी पूछें जिससे वे मिलने गये थे !!
तभी कमरे के कोने में धूम से प्रकट होते हुए हनुमानजी दिखे, वे मुस्काये और हम भी मुस्काये. हम दोनों के मुस्काने का कारण अलग-अलग था. वे मुस्काये क्योंकि वे मुझसे मिलने आये थे और हम मुस्काये क्योंकि उनसे कल का हिसाब जो लेना था. :-)
पहले प्रश्न-बाण हमने चलाये : क्यों प्रभु कल आप किससे मिलने गये थे !!
हनुमानजी : है एक लड़की.....
बहुत ही व्यग्रता से मुझे याद कर रही थी.
राजीव : कौन है वह ?
हनु. : तुम जानकर क्या करोगे !! (कहकर वे मुस्काये)
(इसके पहले कि हम कुछ बोलते वे ही बोले)
हनु. : अच्छा जाओ थाली लेके आओ.
(मैं चौंका कि बुनिया तो है नहीं, फिर थाली का क्या काम !!)
मैंने पूछा : प्रभु, थाली का क्या काम.
हनु. : तुमको मिलाते हैं.
मैं रसोईं में गया पर सारे पात्र जूठे थे, थाली भी, तो कैसे देता !! धोने में थोडा समय लगता. (कामचोर हूँ ना) अतः बोला : हनुमानजी, थाली में कैसे दिखायेंगे !! पहले बताइये कि वह है कौन !! बात घुमा के मत होइए मौन !!
हनु. : अरे बालक, वह अच्छे पति की कामना में पिछले १४ सप्ताह से मंगलवार का व्रत रख रही है, तो उसको दर्शन देना अनिवार्य था.
अब उसके लिये लड़का खोजना मेरा कर्तव्य बन गया है.
मैं सकुचाया कि कहीं मुझे ही न चुन लें, अतः तड से बात पलट के बोला तो फिर दिनचर्या तो आपने देखी ही नहीं. देख लीजिए तो बात आगे बढ़े.
मैंने उनकी ओर अपनी दिनचर्या बढ़ाई.
वे पढ़ने लगे :
1. उठ जाना.
2. चाय पीना.
3. लैट्रिन जाना.
4. ब्रश करना.
5. व्यायाम करना - 1 डिप्स.
6. स्नान करना.
7. भोजन करना.
8. रात्रिभोज करना.
9. सो जाना.
वे बोले मुझे पता था कि यही होगा. फिर बोले कि अच्छा चलता हूँ.
हमने भी प्रणाम किया और इस प्रकार एक बार फिर से दिनचर्या की यात्रा पर चल निकला.

आगे भी है अभी........

स्वतंत्रता दिवस के दिन.

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-



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दिन : रविवार, 15-8-10.
स्थान : हमारा घर.
समय : दोपहर साढ़े तीन बजे.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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आप सोच रहे होंगे कि हम कहाँ अदृश्य हो गये थे !!
तो बताते चलें कि हम तो यहीं थे बस हनुमान जी ही अदृश्य हो गये तो हम भी बैठ गये. नौ अगस्त के बाद आये ही नहीं.
आज १५ अगस्त है यानि कि स्वतंत्रता दिवस है.
आज हम फिर उसी स्थिति में थे यानि.....
हम बिस्तर पर पड़े बस मरने की प्रार्थना ही कर रहे थे. थकान और अस्वस्थता महसूस हो रही थी.
पूरे शरीर में भीषण दर्द की लहर उठ रही थी. दोनों पसलियों और पीठ में दर्द था. घुटने में और एड़ी में भी तीव्र दर्द था. बेहद दुर्बलता अनुभूत हो रही थी. मुंह खोलता था तो जबड़ा ही खुला रह जाता था, बड़ी कठिनाई से बन्द होता था.
हमारी स्थिति में पहले से कोई सुधार नहीं हो रहा था.
कि तभी कमरे के कोने से कुछ परिचित सा धूम उठते देख कर आश्चर्य हुआ.
ऐसा लगा कि हनुमान जी प्रकट हो रहे हैं, पर हमें लगा कि ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि हनुमान जी हमसे रुष्ट हो गये हैं, वे तो आ ही नहीं सकते. पर तस्वीर धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगी और धीरे-धीरे हनुमानजी प्रकट हुए.
हम तो बस उठ कर उनके पाँव पकड़ लेना चाहते थे पर उठने का सामर्थ्य तो जैसे खो चुके थे.
हनुमानजी के तेजस्वी चेहरे पर एक अद्भुत सी आभा विद्यमान थी. वे मुस्कुराए और बोले : लेटे रहो, लेटे रहो...
हम कुछ संतुष्ट हुए कि मेरे मन की बात वे समझ गये थे.
वे आगे बोले : तो मानते हो न कि मेरे बिना तुम आगे नहीं बढ़ सकते !!
यह सुनकर मेरी आँखों में आँसू भर आये.....हम निःशब्द पड़े रहे. मन ही मन यही कहा कि हनुमानजी मेरा बल तो आप हैं.
हम क्षमा चाहेंगे कि हमने सदैव ही आपकी उपेक्षा की.
वे बोले : तो कल से दिनचर्या आरम्भ करते हैं, ठीक !!
कल से क्यों आज से ही...बल्कि अभी से...ठीक !!
और पहले वाली सारी बातें रहेंगी कि प्रतिदिन आपकी दिनचर्या में नौ सुधार होने ही चाहिये और एक नई बात भी जोड़िए कि यदि कोई एक त्रुटि हुई तो आप दो सुधार दण्ड के रूप में करेंगे. ठीक !!
हमने हाँ में सिर हिलाया और हलके से मुस्काये. तब तक आँसू की धारायें सूख चुकी थीं.
वे बोले : तो हम चलते हैं, एक लड़की से भी मिलने जाना है और हम जरा जल्दी में हैं. जय श्री राम.
हमने भी मन ही मन 'जय श्री राम' कहा.
लेकिन हम चौंके कि वे एक लड़की से मिलने क्यों गये !!!!
और ये लड़की कौन है !!!!
कल तक बोलने में ठीक हो जायें फिर बहुत कुछ पूछना है कि कहाँ गये थे. क्यों गये थे और ये लड़की कौन ??
पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा है कि ये सब कुछ नौ अगस्त को भी हुआ था !!
आप क्या सोचते हैं ?

आगे भी है अभी........

हनुमानजी, लड़की और मैं !!

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दिन : सोमवार, 9-8-10.
स्थान : हमारा घर.
समय : दोपहर तीन बजे.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
-------------------------------------------------------------------------------------------हम बिस्तर पर पड़े बस मरने की प्रार्थना ही कर रहे थे. थकान और अस्वस्थता महसूस हो रही थी.
पूरे शरीर में भीषण दर्द की लहर उठ रही थी. दोनों पसलियों और पीठ में दर्द था. घुटने में और एड़ी में भी तीव्र दर्द था. बेहद दुर्बलता अनुभूत हो रही थी. मुंह खोलता था तो जबड़ा ही खुला रह जाता था, बड़ी कठिनाई से बन्द होता था.
कि तभी कमरे के कोने से कुछ परिचित सा धूम उठते देख कर आश्चर्य हुआ.
ऐसा लगा कि हनुमान जी प्रकट हो रहे हैं, पर हमें लगा कि ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि हनुमान जी हमसे रुष्ट हो गये हैं, वे तो आ ही नहीं सकते. पर तस्वीर धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगी और धीरे-धीरे हनुमानजी प्रकट हुए.
हम तो बस उठ कर उनके पाँव पकड़ लेना चाहते थे पर उठने का सामर्थ्य तो जैसे खो चुके थे.
हनुमानजी के तेजस्वी चेहरे पर एक अद्भुत सी आभा विद्यमान थी. वे मुस्कुराए और बोले : लेटे रहो, लेटे रहो...
हम कुछ संतुष्ट हुए कि मेरे मन की बात वे समझ गये थे.
वे आगे बोले : तो मानते हो न कि मेरे बिना तुम आगे नहीं बढ़ सकते !!
यह सुनकर मेरी आँखों में आँसू भर आये.....हम निःशब्द पड़े रहे. मन ही मन यही कहा कि हनुमानजी मेरा बल तो आप हैं.
हम क्षमा चाहेंगे कि हमने सदैव ही आपकी उपेक्षा की.
वे बोले : तो कल से दिनचर्या आरम्भ करते हैं, ठीक !!
कल से क्यों आज से ही...बल्कि अभी से...ठीक !!
और पहले वाली सारी बातें रहेंगी कि प्रतिदिन आपकी दिनचर्या में नौ सुधार होने ही चाहिये और एक नई बात भी जोड़िए कि यदि कोई एक त्रुटि हुई तो आप दो सुधार दण्ड के रूप में करेंगे. ठीक !!
हमने हाँ में सिर हिलाया और हलके से मुस्काये. तब तक आँसू की धारायें सूख चुकी थीं.
वे बोले : तो हम चलते हैं, एक लड़की से भी मिलने जाना है और हम जरा जल्दी में हैं. जय श्री राम.
हमने भी मन ही मन 'जय श्री राम' कहा.
लेकिन हम चौंके कि वे एक लड़की से मिलने क्यों गये !!!!
और ये लड़की कौन है !!!!
कल तक बोलने में ठीक हो जायें फिर बहुत कुछ पूछना है कि कहाँ गये थे. क्यों गये थे और ये लड़की कौन ??

आगे भी है अभी........

अब दोपहर तीन बजे तक उठ जाते हैं :-) पर कुछ अंधेरापन है !

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वैसे रामजी से मिलने को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई है पर दिनचर्या में प्रगति को हम उसी दिशा में बढ़ा एक दृढ पग मान रहे हैं परन्तु हनुमानजी...!!
उनका कोई पता ही नहीं चल रहा है !
सर्वत्र अन्धकार ही दिख रहा है.
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दिन : बुधवार, 14-7-10.
स्थान : हमारा घर.
समय : रात्रि 03:40 बजे.
व्यक्ति : एक हम बस और दूसरा कोई नहीं. एक हनुमानजी थे पर.... !!
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14-7-10
अब हम दोपहर तीन बजे तक उठ जाते हैं और यही हमारी आज की आज की बड़ी उपलब्धि है.
आज की दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
1. 3:00 बजे तक उठ जाना.
2. 3:30 बजे तक चाय पीना.
3. 4:10 बजे तक लैट्रिन जाना.
4. 4:45 बजे तक ब्रश करना.
5. 5:45 बजे तक व्यायाम करना - 5 डिप्स.
6. 6:30 बजे तक स्नान करना.
7. 7:30 बजे तक भोजन करना.
8. 11:50 बजे तक रात्रिभोज करना.
9. 3:30 बजे तक सो जाना.
वैसे सभी नौ कार्यों का समय सुधरा है पर रात्रिभोज, अब रात्रि बारह बजे के पहले संपन्न हो गया और अब इसे बनाए रखने का प्रयास रहेगा और साढ़े तीन बजे तक सो भी जाया करेंगे और आज सो भी साढ़े तीन बजे तक गये.

आगे भी है अभी........

पथ-प्रदर्शक ही भाग खड़ा हुआ !!

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दिन : मंगलवार, 13-7-10.
स्थान : हमारा घर.
समय : रात्रि 4:00 बजे.
व्यक्ति : एक हम, दूसरे हनुमानजी पर उनकी उपस्थिति छाया रूप में है !!
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13-7-10
हनुमानजी पिछले कुछ दिनों से गायब हैं और हमें हमारी दिनचर्या अकेले ही वहन करनी पड़ रही है. (!!)
आज की दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
1. 3:10 बजे तक उठ जाना.
2. 3:40 बजे तक चाय पीना.
3. 4:20 बजे तक लैट्रिन जाना.
4. 4:55 बजे तक ब्रश करना.
5. 5:55 बजे तक व्यायाम करना - 4 डिप्स.
6. 6:40 बजे तक स्नान करना.
7. 7:40 बजे तक भोजन करना.
8. 12:00 बजे तक रात्रिभोज करना.
9. 3:40 बजे तक सो जाना.
आज कुछ विशेष और नवीन समाचार नहीं है. बस प्रार्थना करिये कि हनुमानजी मिल जाएँ और फिर वह प्रभु श्रीरामजी तक ले जायें.
बड़ा लफड़ा हो गया भाई !
एक को खोज रहे थे, वह तो मिला नहीं, उलटे पथ-प्रदर्शक ही भाग खड़ा हुआ !!
अब उसी को खोजते फिर रहे हैं !!
अरे ! हनुमान जीsssss !!
कहाँ हो दीनानाथ !!
दर्शन दो महाराज !!
आप लोग भी प्रार्थना करिये........ मगर सच्चे मन से.

आगे भी है अभी........

सखी वे मुझसे कह कर जाते !

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हनुमानजी तो एकदम अंतर्ध्यान हो गये !
उनका कोई पता ही नहीं चला कल !
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दिन : सोमवार, 12-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : रात्रि 4:10 बजे.
व्यक्ति : बस दो (या एक) !!
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हमें नींद आ रही थी और आज भी हनुमानजी का कुछ पता नहीं चल रहा था.
क्या बात है भाई !
हनुमानजी गये कहाँ !
क्या हुआ हनुमानजी रुष्ट तो नहीं न हो गये !
अरे वही तो एकमात्र मार्ग हैं जो प्रभु श्रीराम तक हमको ले जा सकते हैं.
हनुमानजी यदि न लौटे तो रामजी तक कौन ले जाएगा !
अरे प्रभु ! यदि कोई त्रुटि हुई हो तो दण्ड दे दीजिये हमें परन्तु आइये तो सही !
इन्हीं सब चिंताओं से मन घिरा हुआ था.
हम दिनचर्या हाथ में लिए हुए थे.
हम दिनचर्या को स्वयं ही पढते हैं,
दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
१. ३:२० बजे तक उठ जाना.
२. ३:५० बजे तक चाय पीना.
३. ४:३० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०५ बजे तक ब्रश करना.
५. ६:०५ बजे तक व्यायाम करना. ३ डिप्स.
६. ६:५० बजे तक स्नान करना.
७. ७:५० बजे तक भोजन करना.
८. १२:१० बजे तक रात्रिभोज करना.
९. ३:५० बजे तक सो जाना.
और इस प्रकार से हमने नौ सुधारों के रूप में सभी कार्यों का समय सुधारा था पर हनुमानजी अभी तक नहीं आये....
अब हमें नींद आ रही है.....शुभरात्रि हनुमानजी.
कुछ लोग की चिंता में नींद उड़ जाती है, हमको तो और तेजी से लग रही है. !!
हनुमानजी भी बड़े विचित्र प्राणी हैं !
अरे जाना ही था तो बता कर जाते या नहीं आना था तो वही बताते !
आज एक कविता इस स्थिति के लिए याद पड़ रही है, संभवतः दसवीं कक्षा में पढ़ी थी...
सखी वे मुझसे कह कर जाते ,
कह तो क्या वे मुझको अपनी पग बाधा ही पाते ?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना ?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन मे लाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
स्वयं सुसज्जित कर के क्षण मे ,
प्रियतम को प्राणों के पण मे ,
हमी भेज देती है रण मे -
क्षात्र धर्म के नाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
हुआ न यह भी भाग्य अभागा ,
किस पर विफल गर्व अब जागा ?
जिसने अपनाया था, त्यागा ;
रहे स्मरण ही आते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
नयन उन्हें है निष्ठुर कहते ,
पर इनसे आंसू जो बहते ,
सदय ह्रदय वे कैसे सहते ?
गए तरस ही खाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
जाये , सिद्धि पावे वे सुख से ,
दुखी न हो इस जन के दुःख से ,
उपालम्भ दू मैं किस मुख से ?
आज अधिक वे भाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
गए लौट भी वे आवेगे ,
कुछ अपूर्व, अनुपम लावेगे ,
रोते प्राण उन्हें पावेगे,
पर क्या गाते गाते ?
सखी वे मुझसे कह कर जाते !

आगे भी है अभी........

आज हनुमानजी नहीं आये !!

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कोई भी कुछ भी समझे पर हम निष्ठापूर्वक दिनचर्या को सुधार रहे हैं. हनुमानजी भी पता नहीं क्यों इस बात को नहीं समझते हैं !!
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दिन : रविवार, 11-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : रात्रि 4:20 बजे.
व्यक्ति : बस दो !!
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हमें नींद आ रही थी और अब तक हनुमानजी का कुछ पता नहीं चल रहा था.
क्या बात है भाई !
हनुमानजी गये कहाँ !
क्या हुआ हनुमानजी रुष्ट तो नहीं न हो गये !
अरे वही तो एकमात्र मार्ग हैं जो प्रभु श्रीराम तक हमको ले जा सकते हैं.
इन्हीं सब चिंताओं से मन घिरा हुआ था. हम दिनचर्या हाथ में लिए हुए थे. हम दिनचर्या को स्वयं ही पढते हैं,
दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
१. ३:३० बजे तक उठ जाना.
२. ४:०० बजे तक चाय पीना.
३. ४:४० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:१५ बजे तक ब्रश करना.
५. ६:१५ बजे तक व्यायाम करना. २ डिप्स.
६. ७:०० बजे तक स्नान करना.
७. ८:०० बजे तक भोजन करना.
८. १२:२० बजे तक रात्रिभोज करना.
९. ४:०० बजे तक सो जाना.
और इस प्रकार से हमने नौ सुधारों के रूप में सभी कार्यों में समय जोड़ा था पर हनुमानजी अभी तक नहीं आये....
अब हमें नींद आ रही है.....शुभरात्रि हनुमानजी.
कुछ लोग की चिंता में नींद उड़ जाती है, हमको तो और तेजी से लग रही है. !!

आगे भी है अभी........

चलो... अंततः, कब तक ऐसा ही करोगे !!

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कल अस्वस्थ होने के कारण हनुमानजी से कोई वार्ता नहीं कर पाए, पर वो खूब बोले.
आज के आलेख में हमारे शब्द भी हैं और हनुमानजी के भी.
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दिन : शनिवार, 10-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : रात्रि 4:30 बजे.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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अभी तक विश्वास नहीं हो रहा कि हनुमानजी कल घर आये हुए थे.
खैर, हमारी दिनचर्या एक नए सिरे से प्रारम्भ करवा के ही गये थे.
यानि कि 'साढ़े तीन बजे तक उठ जाना' वाली.
और अभी तो आज की दिनचर्या के साथ-साथ उसकी नौ विशेषताएं भी बतानी थीं क्योंकि हम नौ जुलाई को जन्मे थे.
(रामजी की कृपा है कि इकतीस को नहीं जन्मे वर्ना.....)
(हम यही सब सोच रहे थे कि सामने हनुमानजी दिखे)
राजीव : प्रणाम हनुमानजी.
हनुमानजी : ह ह ह, अभी जगे ही हो.
राजीव : अरे, आप ही की प्रतीक्षा कर रहा था. कल तो आप बोलते रहे और हम सो गये, क्या करते रोक नहीं पाए नींद को कि मत आये और आज हम सोना नहीं चाहते थे, वर्ना आप नाराज़ हो जाते.
हनुमानजी : ह ह ह, हाँ कल हम बोलते रहे फिर देखे तो तुम सो चुके थे.
यही न कलियुग है भगवान बोल रहे हैं और भक्त सो रहे हैं, ह ह ह.
(हम समझ गये कि ये अब हमको लजवा रहे हैं, अतः हमने दूसरा विषय छेड़ना ही उचित समझा)
राजीव : हाँ, दिनचर्या हमने बना ली है, दिखाएँ.
हनुमानजी : ह ह ह, दिखाओ.
राजीव : (उनकी ओर बढाते हुए) ये लीजिए....
दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
१. उठना.
२. चाय पीना.
३. लैट्रिन जाना.
४. ब्रश करना.
५. व्यायाम करना.
६. स्नान करना.
७. भोजन करना.
८. रात्रिभोज करना.
९. सो जाना.
हनुमानजी : हमको पता था कि तुम यही करोगे !!
चलो... अंततः, कब तक ऐसा ही करोगे !!
बस ये याद रखना कि ये मेरा साथ तुम्हें अंतिम बार के लिए ही मिल रहा है !!
शुभरात्रि.
(यह कह कर हनुमानजी घूमे और अदृश्य हो गये.)
(ऐसा कहते हुए उनके स्वर में घोर निराशा थी जो अब मेरे मन मस्तिष्क तक विस्तृत हो चुकी थी....)

आगे भी है अभी........

वायु वेग से चलती है, रेंगती नहीं !!

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आज के आलेख में हमारा कोई भी कथन नहीं है, बस मन में उठते विचार हैं जो () कोष्ठक के रूप में हैं.
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दिन : शुक्रवार, 9-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : सायंकाल साढ़े छः.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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हम चादर ओढ़े हुए बिस्तर पर लेटे हुए थे, कुछ उनींदे से थे दिन भर सो चुके थे पर अभी भी थकन और अस्वस्थता महसूस हो रही थी.
पूरे शरीर में भीषण दर्द की लहर उठ रही थी. दोनों पसलियों और पीठ में दर्द था. घुटने में और एड़ी में भी तीव्र दर्द था. बेहद दुर्बलता अनुभूत हो रही थी.
मंदिर जाना तो दो सप्ताह पहले ही छूट गया था और अब कभी भी दुनिया भी छूट सकती है, यही लग रहा था.
लेटे-लेटे यही सोचता हुआ समय व्यतीत कर रहा था कि तभी......
कमरे के अन्धकार में एक काया धुंधलके से प्रकट होती हुई दिखी !!
क्या वह हनुमान जी थे !!
...या मेरा भ्रम भर ही था !!
पर वह आकृति धीरे-धीरे स्पष्ट होती गयी......
हाँ, वह हनुमानजी ही थे.
हम बस उनको देखते रहे....देखते रहे...कुछ बोलने के लिए मुंह खोलना चाहा पर नहीं खुल सका.
फिर हनुमानजी ही बोले....
हनुमानजी : कैसे हो वत्स !.....
.....जन्मदिन की अट्ठाईसवीं वर्षगाँठ की शुभकामनायें.
(हम मुस्कुरा दिए)
हनुमानजी : हमने सोचा कि आज तुम उत्सव का आयोजन किये होगे...चलकर बुनिया खा आयें.
(यह सुन आँखों में कुछ अश्रु तैर आये)
(हम कुछ बोलने के लिए मुंह खोलना चाह रहे थे पर होंठ जैसे सिल से गये थे)
हनुमानजी : तुम आज कुछ भी नहीं बोल पाओगे, अतः अनुचित प्रयास मत करो. !!
पर अपनी इस स्थिति के लिए तुम स्वयं ही उत्तरदायी हो....
क्यों स्वयम् से ही शत्रुता कर रहे हो !!
हिन्दू-पुत्र होकर भी तुम पतनोन्मुख बने हुए हो !!
आखिर कब सुधरोगे !!
(मेरी आँखों में पछतावा स्पष्ट दिख रहा था)
हनुमानजी : यदि तुमने निष्ठा से स्मरण न किया होता तो हम न आये होते. !!
तुम्हारा मलिन मुख-मंडल हमसे देखते नहीं बन रहा है.
जीवन की अट्ठाईस वासंती वर्षों से क्या सीखा तुमने !!
अब तो बदलो खुद को......
आधा जीवन निकल चुका है !!
अपने जीवन में व्यक्ति को कई सारे कर्तव्य निभाने पड़ते हैं...
कुछ माता के प्रति, कुछ पिता के प्रति, कुछ पुत्र के प्रति, कुछ संतान के प्रति, कुछ राष्ट्र के प्रति...
पर तुमने अपने जीवन में कोई कर्तव्य कभी भी नहीं निभाया !!
(ये बात हमें चुभ गयी...पर थी तो सत्य ही)
अच्छा मान लो कि तुम्हारे पास मात्र एक ही वर्ष है तो तुम अपने राष्ट्र के लिए क्या कर सकते हो !!
(हमने मुंह हिलाने का प्रयास किया पर सब व्यर्थ रहा)
तुम बोलो मत, बस विचार करो...
(मैं सोचने लगा....पर कुछ सूझ नहीं रहा था !! राष्ट्र-भक्ति तो कूट-कूट कर भरी थी, आखिर आर.एस.एस. की शाखा से जो जुड़ा रहा हूँ, पर क्या करूँ, कैसे करूँ यह कभी सोच-समझ नहीं पाया !! हमेशा बस यही निष्कर्ष निकाला कि अपना कार्य ईमानदारी और निष्ठा से करना ही राष्ट्र-सेवा है)
हनुमानजी : सोचो..सोचो...
अच्छा अगर मैं तुम्हें एक वचन दूं कि प्रभु तक ले चलूँगा तो तुम बदले में एक वर्ष में भारतमाता को क्या दे सकते हो ??
अपने अगले जन्मदिन तक क्या दे सकते हो ?
(मेरी आँखें चमक उठीं थीं यह सुनकर पर....!!)
अरे यार ! तुम नौ जुलाई को जन्मे हो तुमको तो नौ गुने वेग से प्रगति करनी चाहिये पर तुम तो मूर्छितावस्था में पड़े रहते हो !!
क्या तुमको नहीं लगता कि तुम्हें नौ गुने वेग से आगे बढ़ना चाहिये !!
.....अपने राष्ट्र के लिए !!!!
(हम मुस्कुराए, हम समझ रहे थे कि हनुमानजी हमको कहाँ और क्यों टहला रहे थे !!)
हनुमानजी भी समझ गये कि हमने बात पकड ली है तो वे खुल कर बोले : देखो, अब बहुत समय हो गया है, अब तुम्हें तीव्रगति से आगे बढ़ना चाहिये. तुम्हारी मंद गति के कारण ही आज तुम इस दशा में शय्या पर पड़े हुए हो.
वायु वेग से चलती है, रेंगती नहीं !!
अब तुम्हें वह वेग दिखाना ही होगा.
(यह कहते हुए उनका मुख-मंडल कठोर होता जा रहा था)
तुम मंदिर नहीं आ सके इसलिए हम स्वयम् ही आ गये हैं, पर यह तुम्हें मेरी ओर से मिल रही अंतिम सहायता है, अब भी अगर तुम न उठे यानी प्रगति नहीं करोगे तो मेरा साथ भी खो दोगे !!
(हम शांत थे न उग्रता, न दुःख और न ही कोई और भाव !! बस मस्तिष्क सांय-सांय कर रहा था, ...और ऐसा लग रहा था कि जैसे हनुमान जी भी बोर कर रहे हों !! शायद थक गये थे सुनते-सुनते !!
पर हमारे प्रभु आज बोलने के मूड में थे !!)
हनुमानजी : चलो जो बीत गया, वह बात गयी, अब एक नवीन सवेरा हो. तुम आज से पुनः अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करो.
तो फिर आज कितने बजे उठे थे !!
(हम मौन थे, बस आँखें ही चला रहे थे)
चलो ठीक है मान लेते हैं कि साढ़े तीन बजे. !!
ठीक रहेगा. !!
(हमने पलकें झपका कर हाँ का संकेत दिया और मुस्कुरा भी दिए. हम चाह रहे थे कि बात समाप्त हो और हम सो जाएँ!!)
पर तुम्हें कल अपनी दिनचर्या की नौ विशेषताएं भी बतानी होंगी !!
(हम चौंके !! ये क्या है !!)
हनुमानजी : नौ गुना वेग कैसे आएगा !!
आगे वे क्या बोले पता नहीं क्योंकि हम सो गये थे !!

आगे भी है अभी........

एक विचित्र परिवर्तन !

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छब्बीस जून तक सब कुछ सही चल रहा था और हम नियमित रूप से मंदिर जा रहे थे.
यही लग रहा था कि कुछ दिनों तक मंदिर आयेंगे फिर एक दिन जब सब सुधार संपन्न हो जायेंगे तो हनुमानजी प्रभु श्रीराम जी तक ले जायेंगे.पर....
हम अस्वस्थ हो गये और शय्या पर पड़ गये. हमको लगने लगा कि अब तो बस मर ही जायेंगे और राम जी से मिलना तो रह ही जाएगा. अब क्या किया जाय !!
यही सोच-सोच कर मन व्याकुल हुआ जा रहा था.
फिर कुछ ऐसा घटा जो कि अचम्भे में डालने वाला था !!
हमने अपने जीवन में ऐसा नहीं सोचा था !!

अब आगे पढ़ें कि क्या हुआ.....

आगे भी है अभी........

अब पुनः दस बजे जागने लगे हैं. ;-P

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


दिन : शुक्रवार, 26-6-10
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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आज का दिन जोश से भरा हुआ था. सीधी सी बात है कि कल सब गडबड कर दिए थे तो आज तो सुधार दिखने ही थे. ;-P
आज हनुमानजी को एक दोना बुनिया लाकर दिए. सब कुछ प्रसन्नतापूर्वक बीत गया.
हमने अपनी आज की दिनचर्या उनको प्रस्तुत की, जो इस प्रकार से थी :-
1. सुबह 10:00 बजे तक उठ जाना.
2. 12:50 बजे तक ब्रश करना.
3. 1:25 बजे तक चाय पीना.
4. 2:20 बजे तक स्नान करना.
5. 2:50 बजे तक भोजन करना.
6. 12:10 बजे तक व्यायाम करना. -१६, ५ डिप्स.
7. 12:40 बजे तक रात्रि-भोज करना.
8. रात्रि 2:00 बजे तक सो जाना.
हनुमानजी संतुष्ट दिखे.
पर हम कब प्रभु से मिलने जायेंगे यही विचार करते हुए हम शांतिपूर्वक हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

हनुमानजी पिता होते तो क्या ऐसे ही होते !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


दिन : शुक्रवार, 25-6-30
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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एक नयी सुबह एक नया सूरज लाती है.....पर यहाँ पर एक सितारा टूटा था !!
हमारी समय-सारिणी आज प्रथम बार विपरीत मार्ग पर चल पड़ी थी. यह नकारात्मकता को द्योतित कर रही थी पर सत्य यही था.
हम मलिन मुख लिये हुए बजरंग बली के सम्मुख थे.
बस घंटी बजाई और बजरंग बली को देखा और उनहोंने तो मानो देखते ही जैसे समझ लिया कि बच्चा आज कुछ गडबडी करके आया है !!
हनुमानजी : क्या हुआ, ह ह ह, ऐसा लग रहा है कि तुम्हारी गाडी को किसी ने ठोंक दिया हो !!
(हमारा चेहरा और रोआंसा हो गया, हमने बिना कुछ कहे अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ा दी.)
राजीव : ये लीजिए....
हनुमानजी भी बिना कुछ बोले ले लिये और पढ़ने लगे....
हनुमानजी : हूँsssss
१. सुबह १०:२० बजे तक उठ जाना.
२. १:०० बजे तक ब्रश करना.
३. १:३५ बजे तक चाय पीना.
४. २:३० बजे तक स्नान करना.
५. ३:०० बजे तक भोजन करना.
६. १२:२० बजे तक व्यायाम करना. -१६, ४ डिप्स.
७. १२:५० बजे तक रात्रि-भोज करना.
८. रात्रि २:०५ बजे तक सो जाना.

............(एक मौन सा छा गया कुछ पलों के लिये फिर जोर से हंसी सुनाई पड़ी हनुमानजी की)
ह ह ह तुममें वीरवर लक्ष्मण जी के दर्शन हो रहे हैं !!
जब वे मूर्छित हो गये थे तो उनका चेहरा भी बिलकुल तुम्हारी ही तरह मलिन पड़ गया था. ह ह ह
ऐसा भी क्या हुआ जो इतने दुखी हो !!
हो ही जाता है कभी-कभी अहिरावण से लड़ना पड़ा हो या मेरी ही पूंछ में आग लगी रही हो या समुद्र-पार जाते हुए सुरसा मुझे निगल गयी थी, इतनी सारे विषयों के उपरांत भी मैं कभी नहीं हारा !!
सुरसा के मुंह में जाना पड़ा.....वह तो विधाता का लिखा हुआ था. !!
पर अपने पुरुषार्थ से मैं लड़ा और जीता.
मेरी पूंछ में आग लगे यह भी भाग्यानुसार ही हुआ था.....और लंका का राख में परिवर्तित हो जाना भी परमेश्वर ने ही निर्धारित किया हुआ था.
आपका देर से उठना इस कारण से हुआ क्योंकि आप एक अलार्म घड़ी नहीं रखे हुए हैं !!
सुबह उठने के लिये एक अलार्म घड़ी रखिये ताकि आप दिनचर्या सुधार पायें !
उचित समय पर अलार्म लगाइए और फिर प्रतिदिन इसमें सुधार करते रहें सब ठीक हो जाएगा, इसमें दुखी होने जैसा कुछ भी नहीं है. देखियेगा २४ घण्टे में स्थिति बदल जायेगी.
यह कहकर हनुमानजी ने हमारी पीठ थपथपाई (और यह पहली बार हुआ था !!!!) और कहा कि अब जाओ शयन करो रात बहुत हो चुकी है. आदित्य की रश्मियाँ तुम्हारा जीवन आलोकित करें.
(यह सुनकर मन अति प्रसन्न हो गया . ऐसा लगा कि हनुमानजी ही विधाता हैं और उन्होंने सूर्य की किरणों को मेरी सेवा, मेरी प्रगति में संलग्न कर दिया है.)
(हम बस उनको शांतिपूर्वक सुनते रहे...संभवतः हमेँ सांत्वना और प्रोत्साहन की ही आवश्यकता थी जो आज हनुमानजी से हमेँ प्राप्त हो रहा था.)
हनुमानजी पिता होते तो क्या ऐसे ही होते !! यही विचार करते हुए हम शांतिपूर्वक हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

अब दो बजे तक सो जाने की अनिवार्यता !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


दिन : बृहस्पतिवार, 24-6-30
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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राजीव : प्रणाम प्रभु जी ! (घंटी बजाकर और दोनों हाथ श्रद्धापूर्वक जोड़ते हुए बोले)
हनुमानजी : ह ह ह, आओ आओ...क्या बात है बड़े प्रसन्न दृष्टिगोचर हो रहे हो !
राजीव : कुछ नहीं एक चुटकुला याद आ गया था, उसी के बारे में सोच रहा था.
हनुमानजी : ह ह ह, अरे हमें भी तो सुनाओ हम भी तो थोड़ा सा हंस लें !
राजीव : आप !!! और हँसेंगे !!!!!
आप तो हमेशा ही हँसते रहते हैं !! हा हा हा
हनुमानजी : अरे वो तो तुमको देख के हंसी आ जाती है, ह ह ह. ये हंसी तो सहज स्वाभाविक है !!
राजीव : अच्छा जी ! तो हम आपको जोकर लगते हैं !! (कुछ रुष्ट होने का अभिनय करते हुए)
हनुमानजी : ह ह ह..अरे बालक मेरा वो मतलब नहीं था...तुम्हारी बाल-सुलभ जिज्ञासाएं और तुम्हारी बौद्धिक चपलता आह्लादित करती है...ह ह ह .
राजीव : अच्छा जी, अब आप समय-सारिणी भी तो देखें, आवश्यक बात तो आप भूल ही जाते हैं हमेशा.
हनुमानजी : ह ह ह.....अरे ले आओ भाई ! अब तो हम बूढ़े हो चले हैं कम दिखता और सुनाई देता है और बुद्धि भी कम चलती है, तुम्हीं स्मरण दिला दिया करो.
(पता नहीं क्यों भावुक बातें मुझे बिलकुल ही अच्छी नहीं लगतीं !!! ये मेरा बचपन का स्वभाव है. हनुमानजी की ये बातें भी अच्छी नहीं लगीं)
राजीव : (इसके पहले कि वे और कुछ कहते हमने समय-सारिणी उनकी ओर बढ़ा दी.)ये लीजिए हमारा प्रगति-पत्र....
हनुमानजी : आज कब जगे....!! (वे पढते हैं)

. सुबह :०५ बजे तक उठ जाना.
. :५५ बजे तक ब्रश करना.
. १०:२५ बजे तक चाय पीना.
. १२:५० बजे तक स्नान करना.
. :१० बजे तक भोजन करना.
. :५० बजे तक व्यायाम करना. -१६, डिप्स.
. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.

ये क्या !!! ये तो कल वाली ही है !!
राजीव : नहीं ये आज की ही है पर कल वाली जैसी ही है. !!
हनुमानजी : यानि कि कोई सुधार नहीं !!
राजीव : (सिर झुकाए हुए) नहीं.
हनुमानजी : क्यों ?
राजीव : क्योंकि हम सुधार नहीं कर पाये...क्योंकि हम उसी समय जगे जिस समय पर कल जगे थे...
(बात काटते हुए)
हनुमाजी : क्या उसी समय-जिस समय लगा रखा है !!!....सीधे बताओ कि सुधार क्यों नहीं हुआ !!!
राजीव : (कुछ झुंझलाते हुए) पता नहीं...आप ही बताइये !!!
हनुमानजी : वाह आप की प्रत्येक समस्या का हल हम ही दें !!!......बहुत खूब. !!
राजीव : और नहीं तो क्या...!! आप हनुमानजी फिर किसलिए हैं !!
हनुमानजी : अच्छा जी, तो क्या आप कुछ भी काम हमसे करवा लेंगे. !!
राजीव : (हम समझ गये कि बात बिगड रही है अतः कुछ संभालते हुए बोले) अरे प्रभु ! हमारा वह तात्पर्य नहीं है, हम तो यह कहना चाह रहे हैं कि अब हम यदि उसी समय पर उठे हैं तो कोई कारण तो होगा ही और हम समझ नहीं पा रहे हैं तो आप ही दृष्टि डालिए न !! आप तो बुद्धि दाता है प्रभु !!
हनुमानजी : बस-बस मक्खन नहीं !! हम देखते हैं कि क्या कारण है कि आप ठस हो गये हैं !!!
(कुछ देर सोचते हुए.....फिर बोले)
आप सोते कब हैं ?
राजीव : यही कोई डेढ़, ढाई, तीन, साढ़े तीन तो बज ही जाता है.
हनुमानजी : यही बात है....अब पकड़ में आई है !!
अब व्यक्ति तीन बजे सोयेगा तो नौ बजे तो जागेगा ही !!
अब कल से आप रात्रि के दो बजे पर्त्येक स्थिति में सो ही जायेंगे.
राजीव : (मैं चौंका) क्या ??????
ये कैसे हो सकता है ??????
और वो गूगल बज़ !!!!
और ये ब्लोगिंग !!!!!
अरे नहीं नहीं ये कैसे हो सकता है !!!
हनुमानजी : जो प्रगति में बाधक और अवरुद्धक हैं उनको तो हटाना ही पड़ेगा.
राजीव : हाँ....वो तो ठीक है पर.....लेकिन.....
हनुमानजी : अब लेकिन के पर न उगाइये कल आप रात्रि दो बजे सो जायेंगे और प्रतिदिन सोने का समय यथाशक्ति और घटाते जायेंगे अर्थात और पहले सो जायेंगे. इतना ही नहीं प्रतिदिन न्यूनतम पाँच मिनट तो सुधार करना अनिवार्य ही है.
(हम तो बड़ा ही दण्डित अनुभूत कर रहे थे. ;-(
पर कर भी क्या सकते थे. !!!)
राजीव : प्रभु कोई अन्य उपाय......!!!
हनुमानजी : क्या नौ बजे से पहले नहीं जागना है !!!
राजीव : जागना है...पर
हनुमानजी : फिर से पर....!! अब अगर दोबारा पर किया तो बारह बजे ही सोना पड़ेगा !!!
राजीव : (गिडगिडाते हुए) नहीं महाराज !! ऐसा नहीं करिये. दो बजे ही ठीक है.......
(आज हम स्वयं को बहुत ही दण्डित समझ रहे थे पर क्या हम वास्तव में दण्डित थे !!!
क्या हम दण्ड के अधिकारी थे !!!
ये तो राम ही जाने.
पता नहीं कैसी-कैसी और कितनी परीक्षाएं वह लेंगे !!!!)
यही विचार करते हुए हम शांतिपूर्वक हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

शयन के इच्छुक हनुमानजी और हम !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-



दिन :बुधवार
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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हम देख रहे थे कि हनुमानजी अब कुछ सीमा तक पिघल रहे थे और अब वे ले जाने की भी बात कल करने लगे थे. और कल पहली बार समय-सारिणी में से कुछ घटा !! नहीं तो ये करो, वो करो.
हनुमानजी भी न......!!!
यह सब सोचते हुए हमने जैसे ही मन्दिर की घंटी बजायी, हनुमानजी की आँख खुली, संभवतः झपकी ले रहे थे. अंगडाई लेके बोले : आओ, आओ....हम तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे.
(हम धीरे से मुस्काये और हम देख रहे थे वे सोने के इच्छुक थे तो हमने बिना कुछ उनके कहे ही अपनी समय-सारिणी उनकी ओर बढ़ा दी.)
वे देख कर हंसे और बोले : ह ह ह, लाओ...लाओ, हमेँ यही देखने की इच्छा थी.
राजीव : और फिर सोने की. (मन में सोचा व मुस्काया)
हनुमानजी : क्या हुआ !!
राजीव : कुछ नहीं, आज बुनिया नहीं लाया बस वही सोच रहा था.
हनुमानजी : अरे हमेँ बुनिया की नहीं वरन इस समय-सारिणी की प्रतीक्षा रहती है !
अरे ! तुम नहीं समझोगे...हम कितनी व्यग्रता से इसकी प्रतीक्षा करते हैं ताकि तुम्हारी प्रगति जान पायें !!
और तुम बस पकड़ा दिए हो अब पढ़ने भी दो. !!!
(हमने मौन धारण करना ही उचित समझा.)
हनुमानजी पढते हैं : हूंssss
. सुबह :०५ बजे तक उठ जाना.
. :५५ बजे तक ब्रश करना.
. १०:२५ बजे तक चाय पीना.
. १२:५० बजे तक स्नान करना.
. :१० बजे तक भोजन करना.
. :५० बजे तक व्यायाम करना. -१६, डिप्स.
. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.
ह ह ह....सुधार तो अच्छा हुआ है !
अब आप नौ बजे ही उठ जाते हैं !!
उत्तमं.
(हमको लगा कि गुड दिया है हमेँ, ही ही ही)
हनुमानजी : सब आशानुरूप हो रहा है....
तो अब आप जाइए और अगले दिन के लक्ष्यों पर दृष्टि रखिये.....
अब हम विश्राम के इच्छुक हैं.
हमेँ आश्चर्य हुआ कि आज उन्होंने कुछ आगे बढ़ाने के लिये नहीं कहा !!!
बस इन्हीं सुधारों को आगे बढाने को प्रेरित किया, बस !!!
हम कुछ प्रसन्न और नासमझ की भांति
(यह विचार करते हुए कि क्या अब कल रामजी के यहाँ जाना होने ही वाला है क्या !!)
हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

लैट्रिन जाना बन्द कराया हनुमान जी ने !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


मित्रों समयाभाव के कारण हम आलेख समय पर नहीं लिख पाये परन्तु विश्वास है कि हम सभी आलेख अब लिख पायेंगे. यह व्यवधान संभवतः रामजी की ही इच्छा रही हो और अब वह ये आलेख लिखवाने में हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हों !
पर विश्वास मानिए कि हम क्रमबद्धता, कर्तव्य-पालन, अनुशासन और मन्दिर-गमन का कठोरता से पालन करते रहे हैं.
तो फिर इस बीच क्या-क्या घटा वह सब बताने का समय अब आ गया है.
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दिन : मंगलवार
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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हम पुनः हनुमानजी के समक्ष थे. समस्या वही मुझे रामजी के पास ले चलो और हनुमानजी द्वारा हमारी और रामजी की समय-सारिणी का मिलान/मिलाप करना.
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हमने हनुमानजी से अधीरता से पूछा : प्रभु कब चलेंगे !! (हमारा तो मुखमंडल ही प्रश्नवाचक की मुद्रा में था.)
हनुमानजी : बालक, जब तुम चाहो.
राजीव : तो अभी चलिये न !
हनुमानजी : अभी रात के साढ़े ग्यारह बजे किसी के घर जाते हैं !
राजीव : तो कल दिन में चलिये !
हनुमानजी : पर आपकी दिनचर्या तो प्रभु की दिनचर्या से मिलनी चाहिये न !!
राजीव : वो कब मिलेगी !!
हनुमानजी : अरे पुत्र ! अधीर क्यों होते हो !! जब हम देखेंगे तो कमियां बतायेंगे और तुम सुधार लोगे फिर चलेंगे.
राजीव : (कुछ संतुष्ट होते हुए) ठीक है. (यह कहकर अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ाई)
वे पढते हैं.
हनुमानजी : हूँsssss......
. सुबह १०:०५ बजे तक उठ जाना.
. १०:२५ बजे तक लैट्रिन जाना.
. १०:५५ बजे तक ब्रश करना.
. ११:२५ बजे तक चाय पीना.
. :५० बजे तक स्नान करना.
. :१० बजे तक भोजन करना.
. :५५ बजे तक व्यायाम करना. -१६ डिप्स.
. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.
ह ह ह, अच्छा है अब आप सुबह दस बजे के आस-पास पहुँच गये हैं.
.....और शय्या-चय्या भी छोड़ दी है.
सब आशानुरूप हो रहा है. अब आप अपने चलने के समय के समीप पहुँच रहे हैं.
राजीव : अर्थात आप अभी भी नहीं ले जायेंगे !!
हनुमानजी : देखिये, आप प्रभु के सम्मुख जा रहे हैं.......और यह कोई खेल नहीं है............कुछ तो सुधार आपको करना ही पड़ेगा. क्या आप अपने में सुधार नहीं देखते !!!
क्या आप इन सुधारों से प्रसन्न नहीं हैं !!!
राजीव : हाँ, वो तो है. (यह कह कर हम कुछ संयत होने लगे.)
हनुमानजी : अब भविष्य में जब आप समय-सारिणी लाइये तो यह दूसरा कर्म हटा दीजियेगा.
राजीव : क्यों ?
हनुमानजी : क्योंकि, अच्छा नहीं लगता और हमने तो इसलिए जुड़वाया था ताकि आपमें क्रमबद्धता आ जाए. जो कि आ चुकी है.
राजीव : तो आप उसे छुड़वा क्यों रहे हैं !!
हनुमानजी : (बहुत जोर से हँसे, पर हंसी का स्वर वही रहा)ह ह ह....ह ह ह हम तो एक पल को डर भी गये. !!!!!
अरे वत्स ! छुड़वा नहीं रहे हैं वरन मात्र इतना ही चाह रहे हैं कि उसे न लिखा जाय. अब समझे !! बड़े नादान हो सच्ची, ह ह ह.
राजीव : (हम भी कुछ लज्जित हुए पर स्वयं पर हँसने से स्वयं को ही न रोक पाये) हा हा हा....हमको लगा कि.....!!
हा हा हा.
चलिये.........
.....जी ठीक है, कल से यह कार्य हमारी दिन-चर्या में अदृश्य रूप में विद्यमान रहेगा.
आज भी हम प्रसन्न मन से (यह विचार करते हुए कि ये भी इतने बुरे नहीं हैं) हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

आज हनुमान जी ने मन प्रसन्न कर दिया.

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सोमवार को पुनः रात्रि साढ़े ग्यारह बजे हमने मंदिर के द्वार पर दस्तक दी. मंदिर बंद ही होने वाला था. अब हनुमानजी के शयन का समय हो गया था. हम भी अपने रात्रि-भोज के उपरान्त टहलते हुए मंदिर में पहुँचे थे.
यन्त्रवत घंटा भी बजाया और जयघोष किया- 'जय श्री राम'.
हनुमानजी : आओ, हिन्दुकुल-श्रेष्ठ ! तुम्हारी जय हो.
(हम चकित रह गये, जिन हनुमानजी को हम कोई सम्मान नहीं देते हैं, बस राम तक पहुँचने की सीढ़ी मानते हैं, वे कुछ इस तरह से हमारी जय कर रहे हैं !!)
खैर, अब हम थोड़े...नहीं-नहीं कुछ ज्यादा ही प्रफुल्लित थे.
हम बुनिया नहीं लाये थे क्योंकि हनुमानजी को मधुमेह होने का भय था और उनके मधुमेह होने का क्रेडिट हम अपने मत्थे नहीं लेना चाहते थे. ;-)
अब हम इसके पहले कुछ कहते हनुमानजी स्वयं ही बोल पड़े : समय-सारिणी दिखाइये आर्यवर ! (यह सुन दो बातें मन में आयीं, १. इतना माखन किसलिए !! २. समय-सारिणी कहते हुए उनका बल समय पर अधिक था.) :-)
राम जाने क्या घटित होने वाला था. !!
हमने अपनी दिनचर्या बढ़ाई और हनुमान जी पढ़ने लगे.
हनुमान जी : ओह...तो ये हैं आपके सुकर्म !!
१. सुबह ११:०५ बजे तक उठ जाना.
२. ११:२५ बजे तक लैट्रिन जाना.
३. ११:५५ बजे तक ब्रश करना.
४. १२:२५ बजे तक चाय पीना.
५. २:५० बजे तक स्नान करना.
६. ७:१० बजे तक भोजन करना.
७. ८:१५ बजे तक व्यायाम करना. -१६ डिप्स.
८. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.
ह ह ह.....चलिये यह देख कर हम प्रसन्न हैं कि आपने समय जोड़ लिया है. अब कल आप इन सभी कार्यों के समय में यथाशक्ति सुधार करें, व्यायाम बढायें, उचित भोजन करें और बज़ भी करें. ह ह ह
राजीव : हा हा हा, और बज़ भी करें !!
हनुमान जी : हां, भई वह भी करते रहिये परन्तु दिनचर्या के कार्य प्राथमिक होने ही चाहिये.
राजीव : वाह...वाह...वाह, हनुमान जी. धन्यवाद कि आपने हमको बज़ करने से नहीं रोका, हम तो रुक भी नहीं सकते थे....
हनुमान जी : ह ह ह, वह तो हमको पता ही है तभी तो नहीं रोक रहे हैं.
( हम दो बातें सोच रहे थे कि प्रसन्न व्यक्ति (हनुमानजी) सभी को प्रसन्न रखता है. दूसरी क्या हममें वास्तव में कुछ अच्छा बदलाव आया है !!)
आज संभवतः पहली बार हम प्रसन्न मन से हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

रविवासरीय बजरंगी डांट - समय हेतु. !!

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रविवार का दिन सबके लिए अवकाश का ही होता है पर हम रात्रि के ग्यारह बजे पुनः हनुमान जी के मंदिर पहुँचे, यह हमारा स्व-सुधार का दूसरा दिन था.
एक सूचना जो इस ब्लॉग पर नए हैं उनके लिए
(दरअसल हमेँ अपने प्रभु श्रीराम जी से मिलना था और हमारे पास उनका पता नहीं था तो हम लखनऊ यूनिवर्सिटी के सामने वाले हनुमान मंदिर में हनुमान जी से मिलने और रामजी का पता पूछने पहुँचे. अब हनुमान जी राम जी और हमारी दिनचर्या पत्री को मिला कर एक कर रहे हैं ताकि जब हम राम जी से मिलने पहुँचे तो कोई असुविधा न हो.)
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हम अपने शनिवार के कार्यों को एक दिनचर्या का रूप देकर हनुमानजी जी के सम्मुख पहुँचे.
गर्मी बड़ी थी, हम पसीना पोंछते हुए तेजी से मंदिर का घंटा टनटनाये. (यह हमारे आगमन की सूचना थी :-) हमारे घंटी बजाने की शैली ही कुछ ऐसी है कि हनुमानजी समझ जाते हैं कि कौन आया है.)
आज जल्दी में हम बुनिया भी भूल गये थे. हम पर नियमित होने का अधिक दबाव था, हम किसी भी कीमत पर इस सुधार की प्रक्रिया को भंग नहीं होने दे सकते थे.
दोनों हाथ जोड़ कर हम बोले : जय बजरंग बली. !!
बजरंग बली कहीं व्यस्त थे, कुछ जोड़ घटा रहे थे !!
पता नहीं.....
कुछ रहा होगा, हमने पूछना उचित नहीं समझा. !!
मुझे देखते ही अपनी पोथी बंद करते हुए बोले : ह ह ह, आओ भाई..आओ. क्या हुआ आज बुनिया नहीं लाये हो !! ह ह ह
राजीव : ना...जल्दी में छूट गया. :-)
हनुमानजी : चलो कोई बात नहीं, अधिक मिष्टान्न भी हानिप्रद है....और तुम्हारा आना अतिआवश्यक था.
राजीव : जी.
हनुमानजी : तो अपनी दिनचर्या आप लाये हैं !!
राजीव : जी... हाँ, ये रही (ये कहते हुए हमने अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ाई)
हनुमानजी कुछ चिन्तित और शोचनीय मुद्रा बनाते हुए दिनचर्या को देखते हैं. हम समझ गये कि कुछ न कुछ गडबड तो जरूर ही है. कुछ का अंदाजा तो हमेँ था भी पर उनके मन में क्या था यह समझना कठिन था. !!
वे हमारी दिनचर्या पढ़ने लगे.
हनुमानजी :
१. सुबह उठना.
२. लैट्रिन जाना.
३. ब्रश करना.
४. चाय पीना.
५. स्नान करना.
६. भोजन करना.
७. व्यायाम करना. -१६ डिप्स.
८. रात्रि-भोज करना.
इसमें अच्छा क्या है !!
ऐसा क्या है जिसे तुम सुधार कहते हो !!
राजीव : (कुछ सोचकर अत्यंत दृढ़ता के साथ हमने उत्तर दिया) क्रमबद्धता. !!
हनुमानजी : और....!!! और क्या है !!
राजीव : बस ....!! और... !! और आप बताइये कि आप कहना क्या चाह रहे हैं, मैं समझा नहीं !!
(उनकी मुख-मुद्रा से पूर्णतया स्पष्ट था कि उनका पाला एक मूर्ख से पड़ा था. !!)
हनुमानजी : (झल्लाते हुए) इसमें समय कहाँ है !!!
राजीव : अरे ! हमारे समक्ष तो क्रमबद्धता को बनाए रखने का दबाव था !!
शय्या-चय्या (बेड-टी) से मुक्त है यह दिनचर्या.
और व्यायाम भी किया है एक सेट १६ डिप्स !!
दो बार भोजन भी किया है, यही क्या कम है !!
हनुमानजी : वाह बन्धु...वाह !! मतलब कि दो बार भोजन करके आपने हम पर अहसान कर दिया है जी !!!!
चरण कहाँ हैं आपके !!
राजीव : नहीं हमारा वो मतलब नहीं था, हम तो बस...(हनुमानजी ने हमारी बात काटी)
हनुमानजी : बस....हो गया !!
जो बोलना था आप बोल चुके !!
पूरा मजाक बना रखा है आपने !!
समय-सारिणी का मतलब क्या रहा, अगर उसमें समय न हो !!
राजीव : जी.... (अब हमने चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा)
हनुमानजी : अब जाइए और कल आपकी दिनचर्या में समय होना ही चाहिये.
राजीव : जी...ठीक है.
यह कहकर हम हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

शायद आज मेरे जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन था. !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

बहुत हुई आँख-मिचौली जीवन के साथ साथियों !
यही सोच कर हम पुनः हनुमान जी के सम्मुख उपस्थित थे. हम यह जानते थे कि हनुमान जी हमसे अप्रसन्न होंगे, अतः उपाय भी कर ही लिए थे.
खूब गर्मागर्म रसीली बुनिया बड़े वाले कटोरे में भर कर ले गये. (हनुमान जी का प्रिय भोजन है ये !! और बस हम ही जानते हैं ये !!)
हम मंदिर के द्वार पर पहुँचे...
कटोरा दोनों हाथ में था तो घंटी बजा नहीं पाये.
अब हम थोड़े से डर भी रहे थे कि फिर से गायब हो गये....अब हनुमान जी हमेँ क्या कहेंगे !!
यह सोच कर ह्रदय धक्क-धक्क कर रहा था.
मुंह से 'जय श्री राम' या 'जय बजरंग बली' निकालना भी कठिन हो गया था.
हम चुप-चाप हनुमान जी के सम्मुख पहुँच गये.
हनुमान जी देखते ही चीखे- वहीं रुक जाओ !!
मेरे पैर जड़ हो गये.
हम मौन सिर झुकाए खड़े थे. उनकी आँखों में देखने का साहस भी नहीं था. कातर मन वाला मैं खुद पर ही तरस खा रहा था. लेकिन यहाँ मेरे तरस खाने से कुछ भी नहीं होने वाला था, तरस तो हनुमान जी को खाना था.
हनुमान जी का स्वर गूँजा- लौट जाओ पुत्र.....लौट जाओ....
(यह कहते हुए उनके स्वर में घोर पीड़ा थी. मेरी भी आँख भर आई थी. हम मूर्तिवत खड़े रहे....क्योंकि हम लौटने के लिए नहीं आये थे.)
राजीव : (अत्यंत मन्द स्वर में): प्रभु ! हमसे भूल हो गयी....
(फिर एक लंबा सन्नाटा मंदिर में व्याप्त हो गया. हमारा कंठ अवरुद्ध हो चुका था. कुछ क्षणों पश्चात प्रभु ही बोले..)
हनुमानजी : भूल.....!!!
तुम इसे भूल कहते हो !!
भूल एक बार होती है, दो बार होती है....पर....(उनका भी बोल पाना कठिन हो रहा था.)
(अब हमारी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी थी, कटोरा भारी और गर्म था जिसके कारण टांगें दुखने लगीं थीं)
हम बैठ जाना चाह रहे थे पर....
तभी..
हनुमानजी : हमेँ कुछ भी नहीं चाहिये...!!
तुम चले जाओ.....!!
तुम्हें देख कर मन दुखी हो रहा है....!!
फिर मत आना.....!!!!!!
(हमारे दुःख की सीमा नहीं रही. हम चाहते थे कि धरती फट जाए और हम उसमें समा जायें !!
पर यह भी डर था कि क्या धरतीमाता मुझ अभागे को स्वीकार करेंगी जिसने हनुमानजी का मन दुखाया था. !!!!)
फिर बड़ी ही हिम्मत के बाद हमने कहा- प्रभु ! अंतिम बार क्षमा कर दें. पुनः ऐसा नहीं होगा.
हनुमान जी : नहीं...कैसे नहीं होगा...!!!
पिछली बार भी तो तुमने यही कहा था. !!!
बड़ी-बड़ी डींगें हांक रहे थे. !!!
(हम सिसकने लगे !!)
हनुमान जी : अब ये रुदन करने से कुछ नहीं होने वाला !!
तुम्हारे ये अश्रु झूठे हैं !!
तुम पर पुनः विश्वास कर विश्वासघात नहीं सहना है.
तुम चले जाओ.....!!
राम से तुम्हारा मिल पाना बहुत ही कठिन है. !!!!
(हम सब सुन सकते थे पर यह नहीं.)
राजीव : हनुमानजी !!!
(राम से न मिल पाने की बात ने हमेँ उग्र कर दिया था) राम जी से तो मैं मिलकर ही रहूँगा और आप ही ले जायेंगे. !!! (ये तो बॉलीवुड की फिल्मों का असर था.)
(यह सुन हनुमान जी भी दुःख भूल कर उग्र हो उठे.)
हनुमानजी : क्यों ले जाऊँगा !!!
तुम्हारा दास हूँ क्या !!!
राजीव : नहीं...हमारा वह तात्पर्य नहीं था पर ले तो आप ही जायेंगे.
हनुमानजी : तुम्हे पता नहीं है अभी कि तुम किससे बात कर रहे हो !!
तुम्हारी दृष्टि में हमारा कोई मूल्य नहीं है, यह भी हमेँ पता है.
(हम इस बात पर शांत हो गये क्योंकि यह कुछ हद तक सत्य भी था कि हनुमान जी हमारे लिए राम जी तक पहुंचाने वाली सीढ़ी भर ही थे. हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा का घोर अभाव था.)
(हम कुछ क्षण सोच कर बोले)
राजीव : लेकिन प्रभु ! हमारी श्रद्धा श्रीराम जी के प्रति तो सच्ची है न !!
क्या वह आपके लिए कोई मायने नहीं रखती !!
हनुमान जी : कौन सी श्रद्धा..... !!
वही जो केंडल और बोलीं के साथ थी. !!
जो गूगल बज़ में दिखती है वेरा के रूप में !!
वह श्रद्धा जो तुम डॉक्टर और पद्म भाई के साथ दिखाना जरूरी समझते हो !!......पर प्रभु के लिए तुम्हारे पास समय नहीं रहता !!!
(हम मौन खड़े बस सुन रहे थे और विचार कर रहे थे कि हनुमान जी की बात में दम तो है ही.)
(हमने कहा)
राजीव : प्रभु अब ऐसा नहीं होगा !!
हम समझ गये हैं कि आप क्या कहना चाह रहे हैं !!
हम वचन देते हैं कि अब हम....
हम अपनी प्राथमिकता नहीं निर्धारित कर पा रहे थे पर अब कोई समस्या नहीं है. हम समझ गये हैं कि क्या आवश्यक है और क्या नहीं !!
हनुमान जी (कुछ संतुष्ट पर असंतुष्ट होने का ढोंग करते हुए) : मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. !!
क्या पता तुम कल भी न आये तो !!
राजीव (मुस्काते हुए) : नहीं हम कल भी बुनिया लायेंगे. !!
हनुमान जी : (अपनी मुस्कान दबाते हुए से लगे) हमें तुम्हारी बुनिया की कोई चाह नहीं है. तुम सोचते हो कि बुनिया के बल पर हमेँ खरीद लोगे !!
देवी अहिल्या ने कितने वर्ष तक प्रतीक्षा की थी !!!
कुछ पता है !!!
मात्र प्रभु की चरण-धूलि के लिए ही.
और उन देवी अहिल्या के पास तो कोई हनुमान भी नहीं था. !!!
तुम्हें प्राप्त है तो तुम मेरा मूल्य ही नहीं समझते !!!
(अब हम समझ गये थे कि ई आधा बन्दर और आधा मानुष हमको पका रहा है. !!
और झूठ-मूठ का महत्त्व पाने के प्रयास में है.)
हमने कहा : तो फिर आप क्या चाहते हैं !! आप ही बताइये !!
हनुमान जी : हम क्या चाहेंगे !!
जो भी चाहना है सब तुम्हें ही है !!
जो भी करना है तुमको ही करना है. मैं होता ही कौन हूँ !!
बस तुम्हारा नौकर भर ही तो हूँ !!
(हम समझ गये कि अब माखन लगाना ही पड़ेगा !!)
राजीव : प्रभु, एक आप ही हैं जो कि हमेँ श्रीराम जी तक ले जा सकते हैं. हम आजीवन आपके इस कृत्य के लिए आभारी रहेंगे. हम वचन देते हैं कि हम वह समस्त कार्य करेंगे जो आप कहेंगे.
हनुमानजी भी समझ गये कि अब सब कुछ ठीक है तो वह भी वातावरण को कुछ शांत करने की इच्छा से बोले : पक्का हर बात सुनोगे !!
राजीव : हाँ बिलकुल.
हनुमान जी : ह ह ह, तो फिर लाओ बुनिया. (कहकर वह जो मुस्काये हैं कि बस पूछिए मत.!!)
हमने प्रसन्न मन से कटोरे का ढक्कन खोला और चमस: (चम्मच) के साथ कटोरा उनको पकड़ा दिया.
हनुमान जी : ह ह ह, लाओ भई लाओ.
(एक चम्मच बुनिया मुंह में डालते हुए) खुद बनाते हो या फिर कौन से हलवाई से लाते हो !!
राजीव : (हम मुस्काये) ये क्यों बताएं !!
आप चाहते हैं कि हम बता दें और फिर आप सीधे वहीं से लेलें और हमारा पत्ता साफ़ !!
हनुमान जी : अच्छा तो मतलब कहीं और से ही लाते हो !!
(हनुमान जी की चतुराई और हमारी मूर्खता यहाँ पर देखने योग्य थी.!!) (हम न चाहते हुए भी बता गये कि कहीं और से लाते हैं और वह पकड भी लिए. !!)
ऐसे ही बल-बुद्धि-विद्या के दाता नहीं हैं !!
इसी पर विचार करते हुए कि कितना ही विशाल है हनुमान जी का व्यक्तित्व, हम हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

पुनः हनुमान जी के सम्मुख था.

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


जीवन में पतन भी आता है और व्यक्ति लडखडाता है गिरता भी है पर जो उठने का साहस दिखाता है वही हिन्दू होता है.
हम सिर झुकाए पुनः हनुमान जी के सम्मुख खड़े थे, पूरी तरह अपराध-बोध से ग्रस्त.
अपराध ही तो किया था.....
स्वयं को सुधार रहा था अपनी दिनचर्या बना कर अनुशासित कर रहा था तो फिर मन भटका और सारे अनुशासन त्याग कर फिर गलत राह पर चल पड़ा था.
....पर फिर लगने लगा कि जो भी कर रहा हूँ वह अनुचित है और वह हिन्दू धर्म के विपरीत है. यही सोचकर आज हनुमान जी सामने सिर झुकाए खड़ा था.
हनुमानजी को विश्वास था कि हम आयेंगे....आखिर जहाज का पक्षी चाहे जितना समुद्र पर उड़ ले पर लौट कर तो जहाज पर ही आता है.
हनुमान जी हमेँ समझा रहे थे :- पुत्र देखो बहुत खेल हो चुका !! अब जीवन के विषय में गंभीरता से सोचो. प्रभु श्रीराम के विषय में सोचो. तुम उनके योग्य-पुत्र हो.........
फिर ऐसा क्यों करते हो जो वंश और कुल की मर्यादा के अनुरूप नहीं है !!
जीवन में पतन भी आता है और व्यक्ति लडखडाता है गिरता भी है पर जो उठने का साहस दिखाता है वही हिन्दू होता है.
यह स्मरण रखना.

हमने वचन दिया कि हनुमानजी अब हम अपने कार्य और अनुशासन से नहीं डिगेंगे और पूरी दृढ़ता से नियमों का पालन करेंगे.
हनुमान जी : यशस्वी भवः पुत्र. आप अपनी दिनचर्या कल बना कर लाइये और समस्त कार्य एक सही क्रम में ही होने चाहिये. (यह कहते हुए वह थोड़े से कठोर से दिखे.)
हम समझ गये कि हूल दे रहे हैं. इसी को बन्दर-घुड़की कहते हैं.
हा हा हा.
खैर, यह तो हास्य रहा पर हम अपनी दिनचर्या को सही ढंग से करने के लिए मुदित और आशाओं से भरा हुआ मन लेकर हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

अंततः जीवन में सुबह हुई !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

अंततः हमारे जीवन में सुबह हुई, हालांकि यह सुबह कोई भोर नहीं है पर हम यह कह सकते हैं कि हम सुबह उठे हैं. हा हा हा
अब हम हनुमान जी से हुई अपनी वार्ता की व्याख्या बताने के बजाय सीधे निष्कर्ष बताना चाहेंगे ताकि कार्य शीघ्रता से संपन्न हो सके और हम हनुमान जी की आशाओं पर खरे उतर पायें.
हम अपनी दिनचर्या में आज निम्न सुधार करके हनुमान जी के समक्ष प्रस्तुत थे.
१. दोपहर ११:३० बजे तक उठ जाना.
२. १:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
३. २:०० बजे तक ब्रश करना.
४. २. २:४५ बजे तक चाय पीना.
५. ३:०० बजे तक नहाना.
६. ६:३० बजे तक लंच करना.
७. ७:३० बजे तक इक्सरसाइज़ करना- १३ डिप्स.
८. ११:०० बजे तक डिनर करना.
प्रत्येक कार्य में एक घंटा सुधार और तीन डिप्स भी बढ़ाई.
अब कल के लिए हमेँ एक घंटा पूर्व उठने का लक्ष्य मिला है.
हनुमान जी : तो कल पुनः एक घण्टे का सुधार.
हम मुदित और आशाओं से भरा हुआ मन लेकर हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

शुक्रवार की एक नवीन सायंकाल.

शुक्रवार की एक नवीन सायंकाल, क्यों !!
नवीन इसलिए क्योंकि अब हम बहुत कुछ पीछे छोड़ आये थे.
हम मंदिर पहुंचे और घंटी बजाई, इस बार हमने अभिवादन में 'जय श्री राम' कहा. हनुमान जी को थोडा माखन लगा रहा था.
हनुमान जी : आओ आओ. पहले बुनिया खिलाओ.
राजीव : अरे बिलकुल क्यों नहीं प्रभु, आपका मैं और बुनिया भी आपकी.
हनुमान जी : अरे तुम भी तो लो !
राजीव : अरे नहीं हम तो खाके आये हैं. आप ही लीजिए.
(पाँच मिनट बाद जब जलपान संपन्न हो चुका था.)
हमने भी दिनचर्या बिना कहे ही निकाल के पकड़ा दी.
हनुमान जी : ह ह ह, अरे हम समझ रहे हैं कि सब अच्छा कर रहे हो. अतः दिखाने की शीघ्रता है, परन्तु हाथ तो पोंछ लेने दो. ह ह ह
(फिर हनुमान जी समय-सारिणी पढते हैं.)
हनुमान जी :
१. दोपहर १२:३० बजे तक उठ जाना.
२. २:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
३. ३:०० बजे तक ब्रश करना.
४. २. ३:४५ बजे तक चाय पीना.
५. ४:०० बजे तक नहाना.
६. ७:३० बजे तक लंच करना.
७. ८:३० बजे तक इक्सरसाइज़ करना- १० डिप्स.
८. ११:०० बजे तक डिनर करना.
हनुमान जी पढ़े और बोले पुत्र तुम बहुत ही आगे जाओगे. तुमने मन प्रसन्न कर दिया है.
राजीव ; तो प्रभु कल के लिए क्या !!
हनुमान जी : तो कल पुनः एक घण्टे का सुधार.
हम मुदित और आशाओं से भरा हुआ मन लेकर हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

हम डेढ़ बजे जागे मित्रों !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

बृहस्पतिवार को हम मंदिर में पहुंचे...घंटी बजाई और नारा बुलंद किया- 'जय बजरंग बली'.
हनुमान जी बोले - आओ आओ. तुम आते हो तो अच्छा लगता है.
हम ठहाका मार के हँसे. तो उन्होंने पूछा कि इसमें हँसने कि क्या बात थी तो हमने उत्तर दिया कि कुछ नहीं अगर हमारी दुष्ट बहन यहाँ पर होती तो वह कहती कि तुम आते हो तो अच्छा लगता है और जाते हो तो और भी अच्छा लगता है. हा हा हा.
हनुमान जी अपनी शैली में हँसे - ह ह ह.
हनुमान जी : बहुत हँसी कर रहे हो, आज बुनिया नहीं लाये हो क्या !!
राजीव : हा हा हा, हमेँ पता था कि आपको याद होगा वो तो हम देख रहे थे कि आप मांगते हैं या नहीं !!
और बताइये कैसी है !! गरम है मजेदार मीठी-रसीली !!
हनुमान जी : ह ह ह, तुमने हमारी कमजोरी पकड़ ही ली है.
राजीव : सब आप की ही कृपा है प्रभु.
हनुमान जी : तो दिनचर्या दिखाइए, आज तो आपको एक घंटा पहले जागना था न !!
राजीव : हाँ, प्रभु और वह भी समस्त कार्यों को सुधारते हुए !! ये लीजिए हमारी आज की सुधरी हुई दिनचर्या. (यह कहते हुए हमने दिनचर्या हनुमान जी की ओर बढ़ाई)
हनुमान जी दिनचर्या को पढते हैं-
हनुमान जी :
१. दोपहर १:३० बजे तक उठ जाना.
२. ३:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
३. ४:०० बजे तक ब्रश करना.
४. २. ४:४५ बजे तक चाय पीना.
५. ५:०० बजे तक नहाना.
६. ८:३० बजे तक लंच करना.
७. ९:३० बजे तक इक्सरसाइज़ करना- ८ डिप्स.
८. ११:०० बजे तक डिनर करना.
वाह........वाह......तुमने तो डिप्स भी दो बढाए और सभी कार्य के समय लगभग एक घंटा पहले सुधार लिया है. ह ह ह.
वत्स तुम नहीं जानते तुमने हमेँ कितनी प्रसन्नता दी है. ह ह ह
राजीव : अरे हनुमान जी ! आप नहीं जानते कि आपने हमेँ कितनी प्रसन्नता दी है. हमेँ एक घंटा पहले जगा दिया है और फिर से अभी एक घंटा पहले जगा दिया.
अरे जय बजरंग बलीsssss
अरे जय श्री राssssssम.
(हम तो एक टांग उठाके गोल-गोल घूमने लगे.)
हनुमान जी बोले : बस-बस अब कल एक घंटा पहले उठने के लिए कमर कस लो.
राजीव : बस प्रभु ऐसे ही जगाते रहिये हमारा तो जीवन ही धन्य हो जाएगा.
यह कहकर हम बोले कि प्रभु तो हम चलते हैं.
हनुमान जी : ठीक है संभल के जाना.
हम चौंके कि आज तक तो यह नहीं बोले तो आज क्यों !! क्या मार्ग में किसी होने वाली अनहोनी का संकेत है ये !!
हम यही विचार करते हुए हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

एक और हार पर हनुमान जी का साथ !!

हनुमान जी को वचन दिया था कि हम तीन भाषाओं में सात आलेख लिखेंगे तो वह हमारी दिनचर्या में एक घण्टे का सुधार कर देंगे. पर हम अनुत्तीर्ण हुए. :(
क्या करते !!......
बस एक आलेख लिख पाए वह भी संस्कृत में.
और हार हुआ मुंह लेकर हम हनुमान जी के सामने बुधवार को पहुंचे.
राजीव : जय बजरंग बली !!
हनुमान जी : आओ पुत्र कैसे हो !!
राजीव : हनुमान जी, कल हम दूसरी बार अनुत्तीर्ण हुए हैं. पिछली बार निराश हुए तो ४-५ दिन तक मंदिर ही नहीं आये थे पर इस बार हम आप से ही इस समस्या का हल जानना चाहते हैं !!
आप ही बताइये कि जब एक ही दिन में सात आलेख लिख पाने की हमारी क्षमता ही नहीं है तो कैसे हम कर पायेंगे ?
हनुमान जी : लाओ समय-सारिणी तो दिखाओ !!
राजीव : हाँ जी, लीजिए.
(हमने अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढाते हुए ताज़ी गरमा-गरम बुनिया भी बगल में रख दी.)
अरे करना पड़ता है मित्रों !! ऐसे ही हनुमान जी से बात नहीं हो जाती है !!
हनुमान जी दिनचर्या को पढते हैं-
हनुमान जी :
१. २:३० बजे तक उठ जाना.
२. ४:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
३. ५:०० बजे तक ब्रश करना.
४. २. ५:४५ बजे तक चाय पीना.
५. ६:०० बजे तक नहाना.
६. ९:३० बजे तक लंच करना.
७. १०:३० बजे तक इक्सरसाइज़ करना- ६ डिप्स.
८. ११:०० बजे तक डिनर करना.
(हनुमान जी पढकर मुस्कुराए) ह ह ह, हम खुश हुए, तुमने अपना कार्य ईमानदारी(सच्चरित्रता) से किया है. तुमने कल ३ डिप्स किये थे और आज ६ किये हैं, यानि कि दूना प्रयास.
और सबसे बड़ी बात ये कि तुमने बेड-टी की आदत भी सुधार ली है, जो अभी कल भी दिख रही थी और तुम्हारी दिनचर्या में वापस आ गयी थी !!
हम तुम्हें थोड़ी सी ढील देना चाहेंगे. तुम कल से कोई आलेख मत लिखना !!
( यह सुनके एक बार तो हमको विश्वास ही नहीं हुआ, एक पल को यह भी लगा कि कहीं हनुमान जी नाराज़ तो नहीं न हो गये !!)
हनुमान जी : हम तुम्हें एक घंटा पहले कल जगा देंगे पर तुम्हें अपनी दिनचर्या के हर काम का समय सुधार करना होगा.
राजीव : हम तो यही चाहते ही थे जी !! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद हनुमान जी !!
हम एक घंटा पहले जागने का लक्ष्य लेकर हनुमान जी के सामने से उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

मंगलवार का हनुमान-दर्शन.

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

बड़ा दिन हुआ बड़के भईया से मिले यह सोच के हम पुनः मंगलवार को मंदिर में पहुंचे और जय बजरंग बलि का उद्घोष किया.
प्रभु रुष्ट दिखे.......
कुछ बोले नहीं.....
हमने क्षमा-प्रार्थना की और कहा कि प्रभु मान जाइए. हम पद्म.....
(हनुमान जी हमारी बात काटते और वाक्य पूरा करते हुए बोले : ......भईया के साथ सहारा गंज घूम रहे थे, न !!
(हम तिरछी मुस्कान मारते हुए सोचे
कि इनसे झूठ बोलना संभव नहीं है ये तो अंतर्यामी हैं, सच बोल ही दो.) : अरे अलसा गये थे, स्वामी !
हनुमान जी : तो प्रभु से तो अब मिलना नहीं है !!
राजीव : अरे क्यों नहीं मिलना है ! बिलकुल मिलना है. और चलिए हम अपनी दिनचर्या लेकर आये हैं.
हनुमान जी : तो दिखाइए !
राजीव : ये देखिये-
(हनुमान जी पढते हैं)
हनुमान जी :
१. २:३० बजे तक उठ जाना.
२. ३:४५ बजे तक चाय पीना.
३. ४:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०० बजे तक ब्रश करना.
५. ६:०० बजे तक नहाना.
६. ९:३० बजे तक लंच करना.
७. १०:३० बजे तक इक्सरसाइज़ करना- ३ डिप्स.
८. ११:०० बजे तक डिनर करना.
मतलब कि बाबू कोई सुधार नहीं !!
राजीव : अब आपके समक्ष हूँ, आप ही देखिये.
हनुमान जी : हम क्या देखें !!
हमने तो आपसे कहा है कि तीन भाषाओं में सात आलेख लिखिये और एक घंटा अपनी दिनचर्या में सुधारिये.
राजीव : (कुछ विचारते हुए) : चलिए तो फिर ठीक है. हम आपसे कल मिलते हैं सात आलेखों के साथ.
हमारी आँखों में एक सुनहरी चमक थी. हम आत्मविश्वास से भरा हुआ ह्रदय लेकर शांतिपूर्वक उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

हनुमान जी से कोई दण्ड नहीं मिला और हम बच गये !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

हम सच में इतने बुरे हैं कि हनुमान जी का सुविचार भी नष्ट कर दिए !!
अरे भाई, बेड-टी नहीं छोड़ पाए, और क्या कहें !!
हनुमान जी क्षमा करिये, कल पक्का सुधार लेंगे.
हनुमान जी : बस तुमसे एक काम कहा था वह भी ठीक से नहीं कर पाए !!
राजीव : अब क्या करें, आपने कहा था कि रात को दबाके खाना, सुबह निकालना.....
पर सब रात में ही निकल गया.........
सुबह के लिए कुछ बचा ही नहीं !!
अब कल सुधार का यही प्रयास रहेगा.
कल बेड-टी छोड़ी जायेगी.
हनुमान जी : लाओ अच्छा दिनचर्या तो दिखाओ !!
राजीव : जी, ये लीजिए.
(हनुमान जी पढते हैं)
हनुमान जी :
१. २:३० बजे तक उठ जाना.
२. ३:४५ बजे तक चाय पीना.
३. ४:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०० बजे तक ब्रश करना.
५. ६:०० बजे तक नहाना.
६. ९:३० बजे तक लंच करना.
७. १०:३० बजे तक इक्सरसाइज़ करना- ३ डिप्स.
८. ११:०० बजे तक डिनर करना.
मतलब कि डिप्स ही बस बढ़ी है, वह भी बस २ !!
बाकी कोई सुधार नहीं !!
अरे हनुमान-भक्त हो यार !
थोडा बल-बुद्धि लगाओ !
हम समझ गये कि समय जैसे ठहर रहा है और हमेँ आंधी सी लानी है यानि कि तीव्रगति से कार्य करना होगा.
हम शनिवार का लक्ष्य लेकर ह्रदय में विचार करते हुए शांतिपूर्वक उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

और हनुमान जी ने बेड-टी छीन ली !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

कल जब हम मंदिर से लौटे तो मन में एक बात घूम रही थी कि ये व्यायाम कैसे प्रारम्भ किया जाय. इसी उधेड़बुन में में हम सो गये और आज सुबह यानी दोपहर को जागने के बाद अपनी दिनचर्या में हमने इक्सरसाइज जोड़ ही लिया और दिनचर्या का नया लेखा-जोखा हनुमान जी के मुंह से स्वयं सुनें.
१. २:३० बजे तक उठ जाना.
२. ३:४५ बजे तक चाय पीना.
३. ४:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०० बजे तक ब्रश करना.
५. ६:०० बजे तक नहाना.
६. ९:३० बजे तक लंच करना.
७. १०:३० बजे तक इक्सरसाइज़ करना- १ डिप्स.
८. ११:०० बजे तक डिनर करना.
ह ह ह एक डिप्स........
बस.......
हो गया मुन्ना........
इत्ते में ही चूर हो गये !!!
पांच-पांच साल के लौंडे दिन में हज़ार-हज़ार डिप्स कर रहे हैं और तुम से बस एक डिप्स हुई !!!!!!!
(हमारे चेहरे पर बस हवाईयां उड़ रही थीं और हम कुछ भी नहीं कर सकते थे.)
बेटा अभी बहुत ही सुधार की जरूरत है जी.
कल आप हर हालत में ये डिप्स की संख्या बढ़ाइये भले ही एक बढे पर बढे.
और ये चाय आप सुबह गंदे मुंह कैसे पी लेते हो यार !!!!
हिन्दू हो कि इसाई !!!!
राजीव : हनुमान जी क्या करें बिना चाय पिए कुछ होता ही नहीं है !!!!!!
आप ही कुछ सुझाएँ प्रभु !!
हनुमान जी : ऐसा करो कि तुम घर जाके खूब दबा के खाना और थोडा टहल भी लेना. खाना पच जाएगा....
फिर सुबह उठते ही मेरा मतलब है कि जब उठना इंतज़ार करना........ देखना होगा.
अरे आजमाया हुआ है जी, कोई मजाक की बात नहीं है.
और कल से चाय ब्रश करने के बाद ही पीयोगे और बिना ब्रश किये कुछ भी मुंह में नहीं जाएगा. समझे !!!
राजीव : जी, समझ गया.
हम शुक्रवार का लक्ष्य लेकर ह्रदय में विचार करते हुए शांतिपूर्वक उठे......
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

आज हनुमान जी का चेला बना !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

बुधवार की शाम हम पुनः मंदिर में हनुमान जी के सम्मुख उपस्थित थे.
फिर वही हाल-चाल हुई और फिर हमने अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ाई.
हनुमान जी : ह ह ह लाओ भाई देखें क्या हुआ तुम्हारा !!
और हनुमान जी दिनचर्या पढ़ने लगे-

१. २:३० बजे तक उठ जाना.
२. ३:४५ बजे तक चाय पीना.
३. ४:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०० बजे तक ब्रश करना.
५. ६:०० बजे तक नहाना.
६. १०:०० बजे तक लंच करना.
७. ११:०० बजे तक डिनर करना.
अच्छा एक बात बताओ. कल तुम्हारे जाने के बाद हमने दो पुजारियों को तुम पर टिप्पणी करते हुए सुना कि ये तो हनुमान जी का चेला है ! तुम बताओ तुम क्या सोचते हो इस बारे में !!
राजीव : (मुस्कुराते हुए) प्रभु ! इसमें गलत क्या है !
मैं तो हूँ ही आप का दास.
हमारा खुद के जागने का समय सुधार पाना असंभव था पर आप ने पूरे एक घण्टे सुधार कर दिया है. मैं तो ऋणी हूँ आप का.
हनुमान जी : तो यह दिखना भी तो चाहिये !
राजीव : प्रभु ! हम समझे नहीं कि आप क्या कहना चाह रहे हैं !
हनुमान जी : देखो एकदम सूखे से हो तुम्हें हृष्ट-पुष्ट दिखना चाहिये. बलिष्ठ दिखो हमारी तरह तब तो कोई बात है. राम जी के सामने ऐसे ही पहुँच लोगे तो मेरी क्या इज्जत रह जायेगी.
राजीव : मतलब !
हनुमान जी : अरे यार, तुम मतलब बहुत पूछते हो. कुछ व्यायाम भी किया करो, दंड-बैठक आदि.
राजीव : जी प्रभु ! (हम समझ गये कि कल से हमारी दिनचर्या में व्यायाम भी जुडना चाहिये.)
हम बृहस्पतिवार का लक्ष्य लेकर ह्रदय में विचार करते हुए शांतिपूर्वक उठे......
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आगे भी है अभी........

हमारी सोमवार की विजय और मंगलवारीय उत्सव

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

मंगलवार का दिन और हमारी विजय का भी...
अरे कल हम आलेख लिखने में सफल रहे पूरे सात आलेख वो भी तीन-तीन भाषाओँ में.
और हाँ, हम ढाई बजे जागे भी.
सच में हनुमान जी महान हैं.
अब हम एक नयी दिनचर्या के साथ हनुमान जी के सामने थे.

१. २:३० बजे तक उठ जाना.
२. ३:४५ बजे तक चाय पीना.
३. ४:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०० बजे तक ब्रश करना.
५. ७:०० बजे तक नहाना.
६. ११:०० बजे तक भोजन करना.
हनुमान जी इसे पढ़े और हँसे : ह ह ह अभी बहुत ही सुधार की जरूरत है.
अब आप हमारी एक सलाह मानेंगे !!
राजीव : अरे कैसे नहीं मानेंगे ! आखिर आप ने हमेँ एक घंटा पहले जगाया है. हम तो आपके दास हुए प्रभु.
हनुमान जी : अभी आप ढाई बजे ही जागिये और अन्य बातों को सुधारिये.
राजीव : जैसे ?
हनुमान जी : जैसे कि दो बार भोजन करिये. :)
राजीव : जी.
हम मंगलवार का लक्ष्य लेकर ह्रदय में विचार करते हुए शांतिपूर्वक उठे......
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और मंदिर के बाहर.................

आगे भी है अभी........

आखिरकार हनुमानजी ने शरीर-घडी को सुधारने का प्रयास किया !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

हारने का तो हो ही नहीं रहा है, अपने बाप से मिलना है तो ये( सुबह जागने) कष्ट भी तो उठाना ही पड़ेगा !!
कोई बीच का रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा !!
यही सोच कर हम रात के दो बजे मंदिर पहुंचे और देखा कि हनुमान जी की पूंछ हिल रही थी. मतलब कि जगे हुए थे !!
दो बजे जगे हुए थे !!
(अरे हमारा क्या था, हम तो दो घण्टे बाद चार बजे सोते !!)
हनुमान जी तो जैसे हमारी ही प्रतीक्षा में थे. वे बोले : ह ह ह, हमें पता था कि तुम आओगे.
राजीव : मतलब !!
हनुमान जी : अरे मजाक कर रहे हैं भाई, हम कोई अंतर्यामी थोड़े ही हैं. ह ह ह.
(हम समझ गये कि इनसे क्या छिपा है)
हनुमान जी : तो क्या सोचा ?
राजीव : अब राम जी से तो मिलना ही है, अब आप ही कोई उपाय बताइये कि क्या किया जाए क्योंकि हम तो सुबह जाग नहीं सकते
और आप के प्रभु रात में नहीं जागेंगे !!
कोई बीच का रास्ता ? आप ही कुछ सुझाएँ !!
हमसे तो नहीं कुछ करते बन रहा है.
हनुमान जी : (कुछ देर तक सोचते रहे फिर बोले) देखो जहां हमारी क्षमता नहीं होती है कि हम कोई कार्य कर पायें, वहाँ हमें दूसरों की सहायता लेनी चाहिए. जैसे हमारे प्रभु ने वानरों की सहायता ली.
राजीव : इसीलिए तो अब राम-पुत्र आपके सम्मुख है प्रभु ! (हमने बीच में ही बात काटी)
हनुमान जी : देखो जब कोई बड़ा बोल रहा हो तो बीच में नहीं बोलते !!
राजीव : जी (यह महसूसा कि ज्यादा बोल गये)
हनुमान जी : देखो तुम्हारी बॉडी-घडी को हम सुधारने की कोशिश तो कर ही सकते हैं.
(हम तिरछी मुस्कान मुस्काये कि जब हम अपना कुछ नहीं कर पाए तो ये ही ही ही)
पर वे समझ गये और रुष्ट होते हुए बोले : तुम मेरा उपहास कर रहे हो !!!
राजीव : नहीं प्रभु, हम तो सोच रहे हैं कि यह एक कठिन कार्य है और हम बहुत ही संघर्ष कर चुके हैं पर कुछ भी नहीं हुआ.
हनुमान जी : इसीलिए तो तुम तुम हो और हम हम. तुम राजीव नन्दन हो और हम अंजनी नन्दन !!
राजीव : (हाँ में सर हिलाते हुए) जी (खुद के छोटे होने का अहसास भी हुआ.)
हनुमान जी : चलो एक सौदा करते हैं तुमको हम एक घंटा पहले जगा दें तो तुम हमें क्या दोगे !!
राजीव : (हम असंभव कहना चाह रहे थे पर हनुमान जी का आत्म-विश्वास देख कर चुप रहना ही उचित समझा.) ( सर झुकाए हुए बोला) आप जो चाहें !!
हनुमान जी : हम चाहते हैं कि तीन काम आप करिये-
१. हिंदी में चार आलेख लिखिए.
२. अंग्रेजी में दो आलेख लिखिए.
३. संस्कृत में एक आलेख लिखिए.
(हमें चक्कर सा आने लगा और इच्छा हुई कि हम वहीं का वहीं मर जाएँ. क्योंकि हम अंग्रेजी में कोई आलेख लिखें ये हमारा बूता नहीं, एक लेख लिखे थे........ दो साल लगा था.
और संस्कृत में तो कभी कुछ लिखा ही नहीं है भाई !!
और हिंदी में १५ दिन में एक आलेख का औसत है !!
और चार-चार आलेख एक ही दिन में !!
असंभव !!
मन में आया कि कहें कि भांग-धतूरा खा लिए हो क्या !! पागल तो नहीं न हो गये हो !!
पर हम चुप रहे.)
हमको एक बार के लिए लगा कि हमारा शोषण हो रहा है !!
हमसे बाल-मजदूरी करवाई जा रही है !!
पर एक मात्र यही द्वार था जिससे थोडा सा प्रकाश आ रहा था.
यानी कि हम एक घंटा पहले २:३० बजे जाग सकते थे पर इतना सब करना पड़ेगा !!
बस भाई लोग अब कल सोमवार को हम ढाई बजे दोपहर में जाग जायेंगे. और बदले में हमारे ब्लॉग पर हलचल भी आपको दिखेगी. अभी जल्दी में हूँ आलेख लिखना है. फिर कल बाद में....
सोमवार को ढाई बजे जागूँगा और संस्कृत का तो ब्लॉग बनाना पड़ेगा !!
क्या लिखूंगा !!
अरे नहीं पहले हिंदी में लिखता हूँ वह सरल रहेगा.
अरे यार अंग्रेजी का क्या होगा बॉस !!
इन्हीं सारी समस्याओं पर विचार करते हुए.........
हम शांतिपूर्वक उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर.................

आगे भी है अभी........

आज हनुमान जी से लड़ के घर आया हूँ !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

कल घर लौट कर हमने सोचा कि हम भी कभी-कभी कितनी बड़ी-बड़ी त्रुटियाँ कर जाते हैं.
समय-सारिणी बना-बना कर इतने दिनों से रोज-रोज चले आ रहे हैं, एक बार भी ये न सोचा कि समय-सारिणी में तो समय ही नहीं है !
हद हो गयी बेवकूफी की !
अब आज समय हमने जोड़ लिया है अब जो होगा देखा जाएगा. अंततः निर्णय हनुमान जी को ही लेना है.
चलिए....
होइहें सोई जो राम रची राखा|
को करी तर्क बढ़ावे शाखा ||
अब हम मंदिर के द्वार पर थे, पीतल के लटक रहे बड़े से घंटे को जोर से बजाया, जैसे मन ही मन घंटे से कह रहे थे कि हम खुदहने घंटा हो गये हैं और हनुमान जी बजा रहे हैं. हा हा हा.
(अन्दर हनुमान जी की आँख खुली...पता नहीं घंटी बजाने से या मेरे हँसने से. :).....)
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हनुमान जी बोले- घंटा थोडा धीरे बजाय करो, हम चौंक जाते हैं....ह ह ह.
तुम्हारे बजाने के अंदाज से लगा कि हमसे नाराज़ हो !!
हमने कहा : नहीं ऐसा कुछ नहीं वह घण्टे पर हाथ थोडा सा तेज पड़ गया था. :P
फिर हमने दिनचर्या...नहीं-नहीं समय-सारिणी उनकी ओर बढ़ाई और....
कहा : आज तो समय-सारिणी में समय है प्रभु.
अब आप को समय-निर्धारण में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.
(हनुमान जी को यह बात शायद बुरी लग गयी.)
हनुमान जी : अच्छा जी, हम सारी दुनिया के संकट-मोचक और हमारी समस्या आप दूर कर रहे हैं ! भई बहुत खूब !
(हम डर गये कि हमारे साथ ये क्या हो रहा है, हमारी हर बात का कोई न कोई गलत अर्थ निकाल ले रहा है !
बड़ी समस्या है यार !!)
हनुमान जी हमारी दिनचर्या पढते हुए....
१. ३:३० बजे तक उठ जाना.
२. ४:४५ बजे तक चाय पीना.
३. ५:१० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ६:०० बजे तक ब्रश करना.
५. ८:०० बजे तक नहाना.
६. ११:०० बजे तक भोजन करना.
वे पन्ना पलटे..
और बाकी का.....!!
राजीव : बस हो गया !......... बाकी और क्या !
हनुमान जी : अरे बाकी की दिनचर्या.... !!
ये तो लंच तक ही हुई ना... !!
बाकी की आधी दिनचर्या कहाँ है ?
राजीव : हमने कहा कि यही डिनर है और यही लंच है, प्रभु.
हनुमान जी : मतलब !
राजीव : मतलब सरजी देखिये दोपहर ३:३० बजे जब सोकर उठे तो लंच काहे का.... !!
एक ही बार खाया है वह भी रात को.
अब आप उसे लंच कहिये या डिनर आपका मन !!
क्या आप दोपहर को सोकर उठते हैं ????????????
और सोते कब हैं ????????
राजीव : वही रात को ३-४ बजे के आस-पास.
हनुमान जी : आप को पता है....जब आप सोने जाते हैं तब हमारे प्रभु सोकर उठते हैं.
आप सुबह के चार बजे सोने जाते हैं और हमारे प्रभु सुबह के चार बजे सोकर उठते हैं !!
इसीलिए आपको प्रभु नहीं मिल पा रहे हैं.
और हम क्या मिलवा दें आपको !!
जिस समय हम आपको चलने को कहेंगे आप उस समय सोये पड़े रहेंगे !!
क्षमा कीजिए आप प्रभु से नहीं मिल सकते !
राजीव : पर क्यों नहीं मिल सकते ?
हनुमान जी : क्योंकि समय आपके पास नहीं है....
राजीव : अरे कैसे नहीं है कोई तो समय होगा जब हम दोनों ही जगे रहते हों !
हनुमान जी : बस अब क्या कहना आगे जब आपके पास अपने लिए ही समय नहीं है.
राजीव : अरे आप किसी बात कर रहे हैं !
समय कैसे नहीं है !
हनुमान जी : आप सुबह जाग पायेंगे !
हमारे प्रभु जी सुबह ही मिलते हैं.
राजीव : इतनी अकड है आपके प्रभु को तो हमें नहीं मिलना है........
चलते हैं जय राम जी की.
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हम शांतिपूर्वक उठे......
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और मंदिर के बाहर.................

आगे भी है अभी........