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अब दो बजे तक सो जाने की अनिवार्यता !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


दिन : बृहस्पतिवार, 24-6-30
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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राजीव : प्रणाम प्रभु जी ! (घंटी बजाकर और दोनों हाथ श्रद्धापूर्वक जोड़ते हुए बोले)
हनुमानजी : ह ह ह, आओ आओ...क्या बात है बड़े प्रसन्न दृष्टिगोचर हो रहे हो !
राजीव : कुछ नहीं एक चुटकुला याद आ गया था, उसी के बारे में सोच रहा था.
हनुमानजी : ह ह ह, अरे हमें भी तो सुनाओ हम भी तो थोड़ा सा हंस लें !
राजीव : आप !!! और हँसेंगे !!!!!
आप तो हमेशा ही हँसते रहते हैं !! हा हा हा
हनुमानजी : अरे वो तो तुमको देख के हंसी आ जाती है, ह ह ह. ये हंसी तो सहज स्वाभाविक है !!
राजीव : अच्छा जी ! तो हम आपको जोकर लगते हैं !! (कुछ रुष्ट होने का अभिनय करते हुए)
हनुमानजी : ह ह ह..अरे बालक मेरा वो मतलब नहीं था...तुम्हारी बाल-सुलभ जिज्ञासाएं और तुम्हारी बौद्धिक चपलता आह्लादित करती है...ह ह ह .
राजीव : अच्छा जी, अब आप समय-सारिणी भी तो देखें, आवश्यक बात तो आप भूल ही जाते हैं हमेशा.
हनुमानजी : ह ह ह.....अरे ले आओ भाई ! अब तो हम बूढ़े हो चले हैं कम दिखता और सुनाई देता है और बुद्धि भी कम चलती है, तुम्हीं स्मरण दिला दिया करो.
(पता नहीं क्यों भावुक बातें मुझे बिलकुल ही अच्छी नहीं लगतीं !!! ये मेरा बचपन का स्वभाव है. हनुमानजी की ये बातें भी अच्छी नहीं लगीं)
राजीव : (इसके पहले कि वे और कुछ कहते हमने समय-सारिणी उनकी ओर बढ़ा दी.)ये लीजिए हमारा प्रगति-पत्र....
हनुमानजी : आज कब जगे....!! (वे पढते हैं)

. सुबह :०५ बजे तक उठ जाना.
. :५५ बजे तक ब्रश करना.
. १०:२५ बजे तक चाय पीना.
. १२:५० बजे तक स्नान करना.
. :१० बजे तक भोजन करना.
. :५० बजे तक व्यायाम करना. -१६, डिप्स.
. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.

ये क्या !!! ये तो कल वाली ही है !!
राजीव : नहीं ये आज की ही है पर कल वाली जैसी ही है. !!
हनुमानजी : यानि कि कोई सुधार नहीं !!
राजीव : (सिर झुकाए हुए) नहीं.
हनुमानजी : क्यों ?
राजीव : क्योंकि हम सुधार नहीं कर पाये...क्योंकि हम उसी समय जगे जिस समय पर कल जगे थे...
(बात काटते हुए)
हनुमाजी : क्या उसी समय-जिस समय लगा रखा है !!!....सीधे बताओ कि सुधार क्यों नहीं हुआ !!!
राजीव : (कुछ झुंझलाते हुए) पता नहीं...आप ही बताइये !!!
हनुमानजी : वाह आप की प्रत्येक समस्या का हल हम ही दें !!!......बहुत खूब. !!
राजीव : और नहीं तो क्या...!! आप हनुमानजी फिर किसलिए हैं !!
हनुमानजी : अच्छा जी, तो क्या आप कुछ भी काम हमसे करवा लेंगे. !!
राजीव : (हम समझ गये कि बात बिगड रही है अतः कुछ संभालते हुए बोले) अरे प्रभु ! हमारा वह तात्पर्य नहीं है, हम तो यह कहना चाह रहे हैं कि अब हम यदि उसी समय पर उठे हैं तो कोई कारण तो होगा ही और हम समझ नहीं पा रहे हैं तो आप ही दृष्टि डालिए न !! आप तो बुद्धि दाता है प्रभु !!
हनुमानजी : बस-बस मक्खन नहीं !! हम देखते हैं कि क्या कारण है कि आप ठस हो गये हैं !!!
(कुछ देर सोचते हुए.....फिर बोले)
आप सोते कब हैं ?
राजीव : यही कोई डेढ़, ढाई, तीन, साढ़े तीन तो बज ही जाता है.
हनुमानजी : यही बात है....अब पकड़ में आई है !!
अब व्यक्ति तीन बजे सोयेगा तो नौ बजे तो जागेगा ही !!
अब कल से आप रात्रि के दो बजे पर्त्येक स्थिति में सो ही जायेंगे.
राजीव : (मैं चौंका) क्या ??????
ये कैसे हो सकता है ??????
और वो गूगल बज़ !!!!
और ये ब्लोगिंग !!!!!
अरे नहीं नहीं ये कैसे हो सकता है !!!
हनुमानजी : जो प्रगति में बाधक और अवरुद्धक हैं उनको तो हटाना ही पड़ेगा.
राजीव : हाँ....वो तो ठीक है पर.....लेकिन.....
हनुमानजी : अब लेकिन के पर न उगाइये कल आप रात्रि दो बजे सो जायेंगे और प्रतिदिन सोने का समय यथाशक्ति और घटाते जायेंगे अर्थात और पहले सो जायेंगे. इतना ही नहीं प्रतिदिन न्यूनतम पाँच मिनट तो सुधार करना अनिवार्य ही है.
(हम तो बड़ा ही दण्डित अनुभूत कर रहे थे. ;-(
पर कर भी क्या सकते थे. !!!)
राजीव : प्रभु कोई अन्य उपाय......!!!
हनुमानजी : क्या नौ बजे से पहले नहीं जागना है !!!
राजीव : जागना है...पर
हनुमानजी : फिर से पर....!! अब अगर दोबारा पर किया तो बारह बजे ही सोना पड़ेगा !!!
राजीव : (गिडगिडाते हुए) नहीं महाराज !! ऐसा नहीं करिये. दो बजे ही ठीक है.......
(आज हम स्वयं को बहुत ही दण्डित समझ रहे थे पर क्या हम वास्तव में दण्डित थे !!!
क्या हम दण्ड के अधिकारी थे !!!
ये तो राम ही जाने.
पता नहीं कैसी-कैसी और कितनी परीक्षाएं वह लेंगे !!!!)
यही विचार करते हुए हम शांतिपूर्वक हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

शयन के इच्छुक हनुमानजी और हम !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-



दिन :बुधवार
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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हम देख रहे थे कि हनुमानजी अब कुछ सीमा तक पिघल रहे थे और अब वे ले जाने की भी बात कल करने लगे थे. और कल पहली बार समय-सारिणी में से कुछ घटा !! नहीं तो ये करो, वो करो.
हनुमानजी भी न......!!!
यह सब सोचते हुए हमने जैसे ही मन्दिर की घंटी बजायी, हनुमानजी की आँख खुली, संभवतः झपकी ले रहे थे. अंगडाई लेके बोले : आओ, आओ....हम तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे.
(हम धीरे से मुस्काये और हम देख रहे थे वे सोने के इच्छुक थे तो हमने बिना कुछ उनके कहे ही अपनी समय-सारिणी उनकी ओर बढ़ा दी.)
वे देख कर हंसे और बोले : ह ह ह, लाओ...लाओ, हमेँ यही देखने की इच्छा थी.
राजीव : और फिर सोने की. (मन में सोचा व मुस्काया)
हनुमानजी : क्या हुआ !!
राजीव : कुछ नहीं, आज बुनिया नहीं लाया बस वही सोच रहा था.
हनुमानजी : अरे हमेँ बुनिया की नहीं वरन इस समय-सारिणी की प्रतीक्षा रहती है !
अरे ! तुम नहीं समझोगे...हम कितनी व्यग्रता से इसकी प्रतीक्षा करते हैं ताकि तुम्हारी प्रगति जान पायें !!
और तुम बस पकड़ा दिए हो अब पढ़ने भी दो. !!!
(हमने मौन धारण करना ही उचित समझा.)
हनुमानजी पढते हैं : हूंssss
. सुबह :०५ बजे तक उठ जाना.
. :५५ बजे तक ब्रश करना.
. १०:२५ बजे तक चाय पीना.
. १२:५० बजे तक स्नान करना.
. :१० बजे तक भोजन करना.
. :५० बजे तक व्यायाम करना. -१६, डिप्स.
. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.
ह ह ह....सुधार तो अच्छा हुआ है !
अब आप नौ बजे ही उठ जाते हैं !!
उत्तमं.
(हमको लगा कि गुड दिया है हमेँ, ही ही ही)
हनुमानजी : सब आशानुरूप हो रहा है....
तो अब आप जाइए और अगले दिन के लक्ष्यों पर दृष्टि रखिये.....
अब हम विश्राम के इच्छुक हैं.
हमेँ आश्चर्य हुआ कि आज उन्होंने कुछ आगे बढ़ाने के लिये नहीं कहा !!!
बस इन्हीं सुधारों को आगे बढाने को प्रेरित किया, बस !!!
हम कुछ प्रसन्न और नासमझ की भांति
(यह विचार करते हुए कि क्या अब कल रामजी के यहाँ जाना होने ही वाला है क्या !!)
हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

लैट्रिन जाना बन्द कराया हनुमान जी ने !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


मित्रों समयाभाव के कारण हम आलेख समय पर नहीं लिख पाये परन्तु विश्वास है कि हम सभी आलेख अब लिख पायेंगे. यह व्यवधान संभवतः रामजी की ही इच्छा रही हो और अब वह ये आलेख लिखवाने में हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहे हों !
पर विश्वास मानिए कि हम क्रमबद्धता, कर्तव्य-पालन, अनुशासन और मन्दिर-गमन का कठोरता से पालन करते रहे हैं.
तो फिर इस बीच क्या-क्या घटा वह सब बताने का समय अब आ गया है.
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दिन : मंगलवार
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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हम पुनः हनुमानजी के समक्ष थे. समस्या वही मुझे रामजी के पास ले चलो और हनुमानजी द्वारा हमारी और रामजी की समय-सारिणी का मिलान/मिलाप करना.
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हमने हनुमानजी से अधीरता से पूछा : प्रभु कब चलेंगे !! (हमारा तो मुखमंडल ही प्रश्नवाचक की मुद्रा में था.)
हनुमानजी : बालक, जब तुम चाहो.
राजीव : तो अभी चलिये न !
हनुमानजी : अभी रात के साढ़े ग्यारह बजे किसी के घर जाते हैं !
राजीव : तो कल दिन में चलिये !
हनुमानजी : पर आपकी दिनचर्या तो प्रभु की दिनचर्या से मिलनी चाहिये न !!
राजीव : वो कब मिलेगी !!
हनुमानजी : अरे पुत्र ! अधीर क्यों होते हो !! जब हम देखेंगे तो कमियां बतायेंगे और तुम सुधार लोगे फिर चलेंगे.
राजीव : (कुछ संतुष्ट होते हुए) ठीक है. (यह कहकर अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ाई)
वे पढते हैं.
हनुमानजी : हूँsssss......
. सुबह १०:०५ बजे तक उठ जाना.
. १०:२५ बजे तक लैट्रिन जाना.
. १०:५५ बजे तक ब्रश करना.
. ११:२५ बजे तक चाय पीना.
. :५० बजे तक स्नान करना.
. :१० बजे तक भोजन करना.
. :५५ बजे तक व्यायाम करना. -१६ डिप्स.
. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.
ह ह ह, अच्छा है अब आप सुबह दस बजे के आस-पास पहुँच गये हैं.
.....और शय्या-चय्या भी छोड़ दी है.
सब आशानुरूप हो रहा है. अब आप अपने चलने के समय के समीप पहुँच रहे हैं.
राजीव : अर्थात आप अभी भी नहीं ले जायेंगे !!
हनुमानजी : देखिये, आप प्रभु के सम्मुख जा रहे हैं.......और यह कोई खेल नहीं है............कुछ तो सुधार आपको करना ही पड़ेगा. क्या आप अपने में सुधार नहीं देखते !!!
क्या आप इन सुधारों से प्रसन्न नहीं हैं !!!
राजीव : हाँ, वो तो है. (यह कह कर हम कुछ संयत होने लगे.)
हनुमानजी : अब भविष्य में जब आप समय-सारिणी लाइये तो यह दूसरा कर्म हटा दीजियेगा.
राजीव : क्यों ?
हनुमानजी : क्योंकि, अच्छा नहीं लगता और हमने तो इसलिए जुड़वाया था ताकि आपमें क्रमबद्धता आ जाए. जो कि आ चुकी है.
राजीव : तो आप उसे छुड़वा क्यों रहे हैं !!
हनुमानजी : (बहुत जोर से हँसे, पर हंसी का स्वर वही रहा)ह ह ह....ह ह ह हम तो एक पल को डर भी गये. !!!!!
अरे वत्स ! छुड़वा नहीं रहे हैं वरन मात्र इतना ही चाह रहे हैं कि उसे न लिखा जाय. अब समझे !! बड़े नादान हो सच्ची, ह ह ह.
राजीव : (हम भी कुछ लज्जित हुए पर स्वयं पर हँसने से स्वयं को ही न रोक पाये) हा हा हा....हमको लगा कि.....!!
हा हा हा.
चलिये.........
.....जी ठीक है, कल से यह कार्य हमारी दिन-चर्या में अदृश्य रूप में विद्यमान रहेगा.
आज भी हम प्रसन्न मन से (यह विचार करते हुए कि ये भी इतने बुरे नहीं हैं) हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

आज हनुमान जी ने मन प्रसन्न कर दिया.

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


सोमवार को पुनः रात्रि साढ़े ग्यारह बजे हमने मंदिर के द्वार पर दस्तक दी. मंदिर बंद ही होने वाला था. अब हनुमानजी के शयन का समय हो गया था. हम भी अपने रात्रि-भोज के उपरान्त टहलते हुए मंदिर में पहुँचे थे.
यन्त्रवत घंटा भी बजाया और जयघोष किया- 'जय श्री राम'.
हनुमानजी : आओ, हिन्दुकुल-श्रेष्ठ ! तुम्हारी जय हो.
(हम चकित रह गये, जिन हनुमानजी को हम कोई सम्मान नहीं देते हैं, बस राम तक पहुँचने की सीढ़ी मानते हैं, वे कुछ इस तरह से हमारी जय कर रहे हैं !!)
खैर, अब हम थोड़े...नहीं-नहीं कुछ ज्यादा ही प्रफुल्लित थे.
हम बुनिया नहीं लाये थे क्योंकि हनुमानजी को मधुमेह होने का भय था और उनके मधुमेह होने का क्रेडिट हम अपने मत्थे नहीं लेना चाहते थे. ;-)
अब हम इसके पहले कुछ कहते हनुमानजी स्वयं ही बोल पड़े : समय-सारिणी दिखाइये आर्यवर ! (यह सुन दो बातें मन में आयीं, १. इतना माखन किसलिए !! २. समय-सारिणी कहते हुए उनका बल समय पर अधिक था.) :-)
राम जाने क्या घटित होने वाला था. !!
हमने अपनी दिनचर्या बढ़ाई और हनुमान जी पढ़ने लगे.
हनुमान जी : ओह...तो ये हैं आपके सुकर्म !!
१. सुबह ११:०५ बजे तक उठ जाना.
२. ११:२५ बजे तक लैट्रिन जाना.
३. ११:५५ बजे तक ब्रश करना.
४. १२:२५ बजे तक चाय पीना.
५. २:५० बजे तक स्नान करना.
६. ७:१० बजे तक भोजन करना.
७. ८:१५ बजे तक व्यायाम करना. -१६ डिप्स.
८. ११:१५ बजे तक रात्रि-भोज करना.
ह ह ह.....चलिये यह देख कर हम प्रसन्न हैं कि आपने समय जोड़ लिया है. अब कल आप इन सभी कार्यों के समय में यथाशक्ति सुधार करें, व्यायाम बढायें, उचित भोजन करें और बज़ भी करें. ह ह ह
राजीव : हा हा हा, और बज़ भी करें !!
हनुमान जी : हां, भई वह भी करते रहिये परन्तु दिनचर्या के कार्य प्राथमिक होने ही चाहिये.
राजीव : वाह...वाह...वाह, हनुमान जी. धन्यवाद कि आपने हमको बज़ करने से नहीं रोका, हम तो रुक भी नहीं सकते थे....
हनुमान जी : ह ह ह, वह तो हमको पता ही है तभी तो नहीं रोक रहे हैं.
( हम दो बातें सोच रहे थे कि प्रसन्न व्यक्ति (हनुमानजी) सभी को प्रसन्न रखता है. दूसरी क्या हममें वास्तव में कुछ अच्छा बदलाव आया है !!)
आज संभवतः पहली बार हम प्रसन्न मन से हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

रविवासरीय बजरंगी डांट - समय हेतु. !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

रविवार का दिन सबके लिए अवकाश का ही होता है पर हम रात्रि के ग्यारह बजे पुनः हनुमान जी के मंदिर पहुँचे, यह हमारा स्व-सुधार का दूसरा दिन था.
एक सूचना जो इस ब्लॉग पर नए हैं उनके लिए
(दरअसल हमेँ अपने प्रभु श्रीराम जी से मिलना था और हमारे पास उनका पता नहीं था तो हम लखनऊ यूनिवर्सिटी के सामने वाले हनुमान मंदिर में हनुमान जी से मिलने और रामजी का पता पूछने पहुँचे. अब हनुमान जी राम जी और हमारी दिनचर्या पत्री को मिला कर एक कर रहे हैं ताकि जब हम राम जी से मिलने पहुँचे तो कोई असुविधा न हो.)
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हम अपने शनिवार के कार्यों को एक दिनचर्या का रूप देकर हनुमानजी जी के सम्मुख पहुँचे.
गर्मी बड़ी थी, हम पसीना पोंछते हुए तेजी से मंदिर का घंटा टनटनाये. (यह हमारे आगमन की सूचना थी :-) हमारे घंटी बजाने की शैली ही कुछ ऐसी है कि हनुमानजी समझ जाते हैं कि कौन आया है.)
आज जल्दी में हम बुनिया भी भूल गये थे. हम पर नियमित होने का अधिक दबाव था, हम किसी भी कीमत पर इस सुधार की प्रक्रिया को भंग नहीं होने दे सकते थे.
दोनों हाथ जोड़ कर हम बोले : जय बजरंग बली. !!
बजरंग बली कहीं व्यस्त थे, कुछ जोड़ घटा रहे थे !!
पता नहीं.....
कुछ रहा होगा, हमने पूछना उचित नहीं समझा. !!
मुझे देखते ही अपनी पोथी बंद करते हुए बोले : ह ह ह, आओ भाई..आओ. क्या हुआ आज बुनिया नहीं लाये हो !! ह ह ह
राजीव : ना...जल्दी में छूट गया. :-)
हनुमानजी : चलो कोई बात नहीं, अधिक मिष्टान्न भी हानिप्रद है....और तुम्हारा आना अतिआवश्यक था.
राजीव : जी.
हनुमानजी : तो अपनी दिनचर्या आप लाये हैं !!
राजीव : जी... हाँ, ये रही (ये कहते हुए हमने अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ाई)
हनुमानजी कुछ चिन्तित और शोचनीय मुद्रा बनाते हुए दिनचर्या को देखते हैं. हम समझ गये कि कुछ न कुछ गडबड तो जरूर ही है. कुछ का अंदाजा तो हमेँ था भी पर उनके मन में क्या था यह समझना कठिन था. !!
वे हमारी दिनचर्या पढ़ने लगे.
हनुमानजी :
१. सुबह उठना.
२. लैट्रिन जाना.
३. ब्रश करना.
४. चाय पीना.
५. स्नान करना.
६. भोजन करना.
७. व्यायाम करना. -१६ डिप्स.
८. रात्रि-भोज करना.
इसमें अच्छा क्या है !!
ऐसा क्या है जिसे तुम सुधार कहते हो !!
राजीव : (कुछ सोचकर अत्यंत दृढ़ता के साथ हमने उत्तर दिया) क्रमबद्धता. !!
हनुमानजी : और....!!! और क्या है !!
राजीव : बस ....!! और... !! और आप बताइये कि आप कहना क्या चाह रहे हैं, मैं समझा नहीं !!
(उनकी मुख-मुद्रा से पूर्णतया स्पष्ट था कि उनका पाला एक मूर्ख से पड़ा था. !!)
हनुमानजी : (झल्लाते हुए) इसमें समय कहाँ है !!!
राजीव : अरे ! हमारे समक्ष तो क्रमबद्धता को बनाए रखने का दबाव था !!
शय्या-चय्या (बेड-टी) से मुक्त है यह दिनचर्या.
और व्यायाम भी किया है एक सेट १६ डिप्स !!
दो बार भोजन भी किया है, यही क्या कम है !!
हनुमानजी : वाह बन्धु...वाह !! मतलब कि दो बार भोजन करके आपने हम पर अहसान कर दिया है जी !!!!
चरण कहाँ हैं आपके !!
राजीव : नहीं हमारा वो मतलब नहीं था, हम तो बस...(हनुमानजी ने हमारी बात काटी)
हनुमानजी : बस....हो गया !!
जो बोलना था आप बोल चुके !!
पूरा मजाक बना रखा है आपने !!
समय-सारिणी का मतलब क्या रहा, अगर उसमें समय न हो !!
राजीव : जी.... (अब हमने चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा)
हनुमानजी : अब जाइए और कल आपकी दिनचर्या में समय होना ही चाहिये.
राजीव : जी...ठीक है.
यह कहकर हम हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

शायद आज मेरे जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन था. !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

बहुत हुई आँख-मिचौली जीवन के साथ साथियों !
यही सोच कर हम पुनः हनुमान जी के सम्मुख उपस्थित थे. हम यह जानते थे कि हनुमान जी हमसे अप्रसन्न होंगे, अतः उपाय भी कर ही लिए थे.
खूब गर्मागर्म रसीली बुनिया बड़े वाले कटोरे में भर कर ले गये. (हनुमान जी का प्रिय भोजन है ये !! और बस हम ही जानते हैं ये !!)
हम मंदिर के द्वार पर पहुँचे...
कटोरा दोनों हाथ में था तो घंटी बजा नहीं पाये.
अब हम थोड़े से डर भी रहे थे कि फिर से गायब हो गये....अब हनुमान जी हमेँ क्या कहेंगे !!
यह सोच कर ह्रदय धक्क-धक्क कर रहा था.
मुंह से 'जय श्री राम' या 'जय बजरंग बली' निकालना भी कठिन हो गया था.
हम चुप-चाप हनुमान जी के सम्मुख पहुँच गये.
हनुमान जी देखते ही चीखे- वहीं रुक जाओ !!
मेरे पैर जड़ हो गये.
हम मौन सिर झुकाए खड़े थे. उनकी आँखों में देखने का साहस भी नहीं था. कातर मन वाला मैं खुद पर ही तरस खा रहा था. लेकिन यहाँ मेरे तरस खाने से कुछ भी नहीं होने वाला था, तरस तो हनुमान जी को खाना था.
हनुमान जी का स्वर गूँजा- लौट जाओ पुत्र.....लौट जाओ....
(यह कहते हुए उनके स्वर में घोर पीड़ा थी. मेरी भी आँख भर आई थी. हम मूर्तिवत खड़े रहे....क्योंकि हम लौटने के लिए नहीं आये थे.)
राजीव : (अत्यंत मन्द स्वर में): प्रभु ! हमसे भूल हो गयी....
(फिर एक लंबा सन्नाटा मंदिर में व्याप्त हो गया. हमारा कंठ अवरुद्ध हो चुका था. कुछ क्षणों पश्चात प्रभु ही बोले..)
हनुमानजी : भूल.....!!!
तुम इसे भूल कहते हो !!
भूल एक बार होती है, दो बार होती है....पर....(उनका भी बोल पाना कठिन हो रहा था.)
(अब हमारी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी थी, कटोरा भारी और गर्म था जिसके कारण टांगें दुखने लगीं थीं)
हम बैठ जाना चाह रहे थे पर....
तभी..
हनुमानजी : हमेँ कुछ भी नहीं चाहिये...!!
तुम चले जाओ.....!!
तुम्हें देख कर मन दुखी हो रहा है....!!
फिर मत आना.....!!!!!!
(हमारे दुःख की सीमा नहीं रही. हम चाहते थे कि धरती फट जाए और हम उसमें समा जायें !!
पर यह भी डर था कि क्या धरतीमाता मुझ अभागे को स्वीकार करेंगी जिसने हनुमानजी का मन दुखाया था. !!!!)
फिर बड़ी ही हिम्मत के बाद हमने कहा- प्रभु ! अंतिम बार क्षमा कर दें. पुनः ऐसा नहीं होगा.
हनुमान जी : नहीं...कैसे नहीं होगा...!!!
पिछली बार भी तो तुमने यही कहा था. !!!
बड़ी-बड़ी डींगें हांक रहे थे. !!!
(हम सिसकने लगे !!)
हनुमान जी : अब ये रुदन करने से कुछ नहीं होने वाला !!
तुम्हारे ये अश्रु झूठे हैं !!
तुम पर पुनः विश्वास कर विश्वासघात नहीं सहना है.
तुम चले जाओ.....!!
राम से तुम्हारा मिल पाना बहुत ही कठिन है. !!!!
(हम सब सुन सकते थे पर यह नहीं.)
राजीव : हनुमानजी !!!
(राम से न मिल पाने की बात ने हमेँ उग्र कर दिया था) राम जी से तो मैं मिलकर ही रहूँगा और आप ही ले जायेंगे. !!! (ये तो बॉलीवुड की फिल्मों का असर था.)
(यह सुन हनुमान जी भी दुःख भूल कर उग्र हो उठे.)
हनुमानजी : क्यों ले जाऊँगा !!!
तुम्हारा दास हूँ क्या !!!
राजीव : नहीं...हमारा वह तात्पर्य नहीं था पर ले तो आप ही जायेंगे.
हनुमानजी : तुम्हे पता नहीं है अभी कि तुम किससे बात कर रहे हो !!
तुम्हारी दृष्टि में हमारा कोई मूल्य नहीं है, यह भी हमेँ पता है.
(हम इस बात पर शांत हो गये क्योंकि यह कुछ हद तक सत्य भी था कि हनुमान जी हमारे लिए राम जी तक पहुंचाने वाली सीढ़ी भर ही थे. हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा का घोर अभाव था.)
(हम कुछ क्षण सोच कर बोले)
राजीव : लेकिन प्रभु ! हमारी श्रद्धा श्रीराम जी के प्रति तो सच्ची है न !!
क्या वह आपके लिए कोई मायने नहीं रखती !!
हनुमान जी : कौन सी श्रद्धा..... !!
वही जो केंडल और बोलीं के साथ थी. !!
जो गूगल बज़ में दिखती है वेरा के रूप में !!
वह श्रद्धा जो तुम डॉक्टर और पद्म भाई के साथ दिखाना जरूरी समझते हो !!......पर प्रभु के लिए तुम्हारे पास समय नहीं रहता !!!
(हम मौन खड़े बस सुन रहे थे और विचार कर रहे थे कि हनुमान जी की बात में दम तो है ही.)
(हमने कहा)
राजीव : प्रभु अब ऐसा नहीं होगा !!
हम समझ गये हैं कि आप क्या कहना चाह रहे हैं !!
हम वचन देते हैं कि अब हम....
हम अपनी प्राथमिकता नहीं निर्धारित कर पा रहे थे पर अब कोई समस्या नहीं है. हम समझ गये हैं कि क्या आवश्यक है और क्या नहीं !!
हनुमान जी (कुछ संतुष्ट पर असंतुष्ट होने का ढोंग करते हुए) : मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. !!
क्या पता तुम कल भी न आये तो !!
राजीव (मुस्काते हुए) : नहीं हम कल भी बुनिया लायेंगे. !!
हनुमान जी : (अपनी मुस्कान दबाते हुए से लगे) हमें तुम्हारी बुनिया की कोई चाह नहीं है. तुम सोचते हो कि बुनिया के बल पर हमेँ खरीद लोगे !!
देवी अहिल्या ने कितने वर्ष तक प्रतीक्षा की थी !!!
कुछ पता है !!!
मात्र प्रभु की चरण-धूलि के लिए ही.
और उन देवी अहिल्या के पास तो कोई हनुमान भी नहीं था. !!!
तुम्हें प्राप्त है तो तुम मेरा मूल्य ही नहीं समझते !!!
(अब हम समझ गये थे कि ई आधा बन्दर और आधा मानुष हमको पका रहा है. !!
और झूठ-मूठ का महत्त्व पाने के प्रयास में है.)
हमने कहा : तो फिर आप क्या चाहते हैं !! आप ही बताइये !!
हनुमान जी : हम क्या चाहेंगे !!
जो भी चाहना है सब तुम्हें ही है !!
जो भी करना है तुमको ही करना है. मैं होता ही कौन हूँ !!
बस तुम्हारा नौकर भर ही तो हूँ !!
(हम समझ गये कि अब माखन लगाना ही पड़ेगा !!)
राजीव : प्रभु, एक आप ही हैं जो कि हमेँ श्रीराम जी तक ले जा सकते हैं. हम आजीवन आपके इस कृत्य के लिए आभारी रहेंगे. हम वचन देते हैं कि हम वह समस्त कार्य करेंगे जो आप कहेंगे.
हनुमानजी भी समझ गये कि अब सब कुछ ठीक है तो वह भी वातावरण को कुछ शांत करने की इच्छा से बोले : पक्का हर बात सुनोगे !!
राजीव : हाँ बिलकुल.
हनुमान जी : ह ह ह, तो फिर लाओ बुनिया. (कहकर वह जो मुस्काये हैं कि बस पूछिए मत.!!)
हमने प्रसन्न मन से कटोरे का ढक्कन खोला और चमस: (चम्मच) के साथ कटोरा उनको पकड़ा दिया.
हनुमान जी : ह ह ह, लाओ भई लाओ.
(एक चम्मच बुनिया मुंह में डालते हुए) खुद बनाते हो या फिर कौन से हलवाई से लाते हो !!
राजीव : (हम मुस्काये) ये क्यों बताएं !!
आप चाहते हैं कि हम बता दें और फिर आप सीधे वहीं से लेलें और हमारा पत्ता साफ़ !!
हनुमान जी : अच्छा तो मतलब कहीं और से ही लाते हो !!
(हनुमान जी की चतुराई और हमारी मूर्खता यहाँ पर देखने योग्य थी.!!) (हम न चाहते हुए भी बता गये कि कहीं और से लाते हैं और वह पकड भी लिए. !!)
ऐसे ही बल-बुद्धि-विद्या के दाता नहीं हैं !!
इसी पर विचार करते हुए कि कितना ही विशाल है हनुमान जी का व्यक्तित्व, हम हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

पुनः हनुमान जी के सम्मुख था.

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


जीवन में पतन भी आता है और व्यक्ति लडखडाता है गिरता भी है पर जो उठने का साहस दिखाता है वही हिन्दू होता है.
हम सिर झुकाए पुनः हनुमान जी के सम्मुख खड़े थे, पूरी तरह अपराध-बोध से ग्रस्त.
अपराध ही तो किया था.....
स्वयं को सुधार रहा था अपनी दिनचर्या बना कर अनुशासित कर रहा था तो फिर मन भटका और सारे अनुशासन त्याग कर फिर गलत राह पर चल पड़ा था.
....पर फिर लगने लगा कि जो भी कर रहा हूँ वह अनुचित है और वह हिन्दू धर्म के विपरीत है. यही सोचकर आज हनुमान जी सामने सिर झुकाए खड़ा था.
हनुमानजी को विश्वास था कि हम आयेंगे....आखिर जहाज का पक्षी चाहे जितना समुद्र पर उड़ ले पर लौट कर तो जहाज पर ही आता है.
हनुमान जी हमेँ समझा रहे थे :- पुत्र देखो बहुत खेल हो चुका !! अब जीवन के विषय में गंभीरता से सोचो. प्रभु श्रीराम के विषय में सोचो. तुम उनके योग्य-पुत्र हो.........
फिर ऐसा क्यों करते हो जो वंश और कुल की मर्यादा के अनुरूप नहीं है !!
जीवन में पतन भी आता है और व्यक्ति लडखडाता है गिरता भी है पर जो उठने का साहस दिखाता है वही हिन्दू होता है.
यह स्मरण रखना.

हमने वचन दिया कि हनुमानजी अब हम अपने कार्य और अनुशासन से नहीं डिगेंगे और पूरी दृढ़ता से नियमों का पालन करेंगे.
हनुमान जी : यशस्वी भवः पुत्र. आप अपनी दिनचर्या कल बना कर लाइये और समस्त कार्य एक सही क्रम में ही होने चाहिये. (यह कहते हुए वह थोड़े से कठोर से दिखे.)
हम समझ गये कि हूल दे रहे हैं. इसी को बन्दर-घुड़की कहते हैं.
हा हा हा.
खैर, यह तो हास्य रहा पर हम अपनी दिनचर्या को सही ढंग से करने के लिए मुदित और आशाओं से भरा हुआ मन लेकर हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........