पुनः हनुमान जी के सम्मुख था.
जीवन में पतन भी आता है और व्यक्ति लडखडाता है गिरता भी है पर जो उठने का साहस दिखाता है वही हिन्दू होता है.
हम सिर झुकाए पुनः हनुमान जी के सम्मुख खड़े थे, पूरी तरह अपराध-बोध से ग्रस्त.
अपराध ही तो किया था.....
स्वयं को सुधार रहा था अपनी दिनचर्या बना कर अनुशासित कर रहा था तो फिर मन भटका और सारे अनुशासन त्याग कर फिर गलत राह पर चल पड़ा था.
....पर फिर लगने लगा कि जो भी कर रहा हूँ वह अनुचित है और वह हिन्दू धर्म के विपरीत है. यही सोचकर आज हनुमान जी सामने सिर झुकाए खड़ा था.
हनुमानजी को विश्वास था कि हम आयेंगे....आखिर जहाज का पक्षी चाहे जितना समुद्र पर उड़ ले पर लौट कर तो जहाज पर ही आता है.
हनुमान जी हमेँ समझा रहे थे :- पुत्र देखो बहुत खेल हो चुका !! अब जीवन के विषय में गंभीरता से सोचो. प्रभु श्रीराम के विषय में सोचो. तुम उनके योग्य-पुत्र हो.........
फिर ऐसा क्यों करते हो जो वंश और कुल की मर्यादा के अनुरूप नहीं है !!
जीवन में पतन भी आता है और व्यक्ति लडखडाता है गिरता भी है पर जो उठने का साहस दिखाता है वही हिन्दू होता है.
यह स्मरण रखना.
हमने वचन दिया कि हनुमानजी अब हम अपने कार्य और अनुशासन से नहीं डिगेंगे और पूरी दृढ़ता से नियमों का पालन करेंगे.
हनुमान जी : यशस्वी भवः पुत्र. आप अपनी दिनचर्या कल बना कर लाइये और समस्त कार्य एक सही क्रम में ही होने चाहिये. (यह कहते हुए वह थोड़े से कठोर से दिखे.)
हम समझ गये कि हूल दे रहे हैं. इसी को बन्दर-घुड़की कहते हैं.
हा हा हा.
खैर, यह तो हास्य रहा पर हम अपनी दिनचर्या को सही ढंग से करने के लिए मुदित और आशाओं से भरा हुआ मन लेकर हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................
5 comments on "पुनः हनुमान जी के सम्मुख था."
आपकी यह एक टिप्पणी हममें अदम्य पराक्रम को जन्म देगी.
हम और अधिक दृढ़ता से अनुशासन का पालन कर पायेंगे.
हम अनुशासित बने रहने के लिए दृढप्रतिज्ञ और अटल हैं.
पुनः धन्यवाद.
आपने बहुत ही खूबसूरती से हम दोनों के नाम को मिलके एकाकार कर दिया है.
यह अद्भुत एकता भारत में ही दिखती है.
हमेँ गर्व है कि हम भारत माता के आँचल में पले-बढे हैं.
बहुत-बहुत धन्यवाद ऐसी टिप्पणी के लिए.