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शायद आज मेरे जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन था. !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

बहुत हुई आँख-मिचौली जीवन के साथ साथियों !
यही सोच कर हम पुनः हनुमान जी के सम्मुख उपस्थित थे. हम यह जानते थे कि हनुमान जी हमसे अप्रसन्न होंगे, अतः उपाय भी कर ही लिए थे.
खूब गर्मागर्म रसीली बुनिया बड़े वाले कटोरे में भर कर ले गये. (हनुमान जी का प्रिय भोजन है ये !! और बस हम ही जानते हैं ये !!)
हम मंदिर के द्वार पर पहुँचे...
कटोरा दोनों हाथ में था तो घंटी बजा नहीं पाये.
अब हम थोड़े से डर भी रहे थे कि फिर से गायब हो गये....अब हनुमान जी हमेँ क्या कहेंगे !!
यह सोच कर ह्रदय धक्क-धक्क कर रहा था.
मुंह से 'जय श्री राम' या 'जय बजरंग बली' निकालना भी कठिन हो गया था.
हम चुप-चाप हनुमान जी के सम्मुख पहुँच गये.
हनुमान जी देखते ही चीखे- वहीं रुक जाओ !!
मेरे पैर जड़ हो गये.
हम मौन सिर झुकाए खड़े थे. उनकी आँखों में देखने का साहस भी नहीं था. कातर मन वाला मैं खुद पर ही तरस खा रहा था. लेकिन यहाँ मेरे तरस खाने से कुछ भी नहीं होने वाला था, तरस तो हनुमान जी को खाना था.
हनुमान जी का स्वर गूँजा- लौट जाओ पुत्र.....लौट जाओ....
(यह कहते हुए उनके स्वर में घोर पीड़ा थी. मेरी भी आँख भर आई थी. हम मूर्तिवत खड़े रहे....क्योंकि हम लौटने के लिए नहीं आये थे.)
राजीव : (अत्यंत मन्द स्वर में): प्रभु ! हमसे भूल हो गयी....
(फिर एक लंबा सन्नाटा मंदिर में व्याप्त हो गया. हमारा कंठ अवरुद्ध हो चुका था. कुछ क्षणों पश्चात प्रभु ही बोले..)
हनुमानजी : भूल.....!!!
तुम इसे भूल कहते हो !!
भूल एक बार होती है, दो बार होती है....पर....(उनका भी बोल पाना कठिन हो रहा था.)
(अब हमारी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी थी, कटोरा भारी और गर्म था जिसके कारण टांगें दुखने लगीं थीं)
हम बैठ जाना चाह रहे थे पर....
तभी..
हनुमानजी : हमेँ कुछ भी नहीं चाहिये...!!
तुम चले जाओ.....!!
तुम्हें देख कर मन दुखी हो रहा है....!!
फिर मत आना.....!!!!!!
(हमारे दुःख की सीमा नहीं रही. हम चाहते थे कि धरती फट जाए और हम उसमें समा जायें !!
पर यह भी डर था कि क्या धरतीमाता मुझ अभागे को स्वीकार करेंगी जिसने हनुमानजी का मन दुखाया था. !!!!)
फिर बड़ी ही हिम्मत के बाद हमने कहा- प्रभु ! अंतिम बार क्षमा कर दें. पुनः ऐसा नहीं होगा.
हनुमान जी : नहीं...कैसे नहीं होगा...!!!
पिछली बार भी तो तुमने यही कहा था. !!!
बड़ी-बड़ी डींगें हांक रहे थे. !!!
(हम सिसकने लगे !!)
हनुमान जी : अब ये रुदन करने से कुछ नहीं होने वाला !!
तुम्हारे ये अश्रु झूठे हैं !!
तुम पर पुनः विश्वास कर विश्वासघात नहीं सहना है.
तुम चले जाओ.....!!
राम से तुम्हारा मिल पाना बहुत ही कठिन है. !!!!
(हम सब सुन सकते थे पर यह नहीं.)
राजीव : हनुमानजी !!!
(राम से न मिल पाने की बात ने हमेँ उग्र कर दिया था) राम जी से तो मैं मिलकर ही रहूँगा और आप ही ले जायेंगे. !!! (ये तो बॉलीवुड की फिल्मों का असर था.)
(यह सुन हनुमान जी भी दुःख भूल कर उग्र हो उठे.)
हनुमानजी : क्यों ले जाऊँगा !!!
तुम्हारा दास हूँ क्या !!!
राजीव : नहीं...हमारा वह तात्पर्य नहीं था पर ले तो आप ही जायेंगे.
हनुमानजी : तुम्हे पता नहीं है अभी कि तुम किससे बात कर रहे हो !!
तुम्हारी दृष्टि में हमारा कोई मूल्य नहीं है, यह भी हमेँ पता है.
(हम इस बात पर शांत हो गये क्योंकि यह कुछ हद तक सत्य भी था कि हनुमान जी हमारे लिए राम जी तक पहुंचाने वाली सीढ़ी भर ही थे. हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा का घोर अभाव था.)
(हम कुछ क्षण सोच कर बोले)
राजीव : लेकिन प्रभु ! हमारी श्रद्धा श्रीराम जी के प्रति तो सच्ची है न !!
क्या वह आपके लिए कोई मायने नहीं रखती !!
हनुमान जी : कौन सी श्रद्धा..... !!
वही जो केंडल और बोलीं के साथ थी. !!
जो गूगल बज़ में दिखती है वेरा के रूप में !!
वह श्रद्धा जो तुम डॉक्टर और पद्म भाई के साथ दिखाना जरूरी समझते हो !!......पर प्रभु के लिए तुम्हारे पास समय नहीं रहता !!!
(हम मौन खड़े बस सुन रहे थे और विचार कर रहे थे कि हनुमान जी की बात में दम तो है ही.)
(हमने कहा)
राजीव : प्रभु अब ऐसा नहीं होगा !!
हम समझ गये हैं कि आप क्या कहना चाह रहे हैं !!
हम वचन देते हैं कि अब हम....
हम अपनी प्राथमिकता नहीं निर्धारित कर पा रहे थे पर अब कोई समस्या नहीं है. हम समझ गये हैं कि क्या आवश्यक है और क्या नहीं !!
हनुमान जी (कुछ संतुष्ट पर असंतुष्ट होने का ढोंग करते हुए) : मुझे तुम पर विश्वास नहीं है. !!
क्या पता तुम कल भी न आये तो !!
राजीव (मुस्काते हुए) : नहीं हम कल भी बुनिया लायेंगे. !!
हनुमान जी : (अपनी मुस्कान दबाते हुए से लगे) हमें तुम्हारी बुनिया की कोई चाह नहीं है. तुम सोचते हो कि बुनिया के बल पर हमेँ खरीद लोगे !!
देवी अहिल्या ने कितने वर्ष तक प्रतीक्षा की थी !!!
कुछ पता है !!!
मात्र प्रभु की चरण-धूलि के लिए ही.
और उन देवी अहिल्या के पास तो कोई हनुमान भी नहीं था. !!!
तुम्हें प्राप्त है तो तुम मेरा मूल्य ही नहीं समझते !!!
(अब हम समझ गये थे कि ई आधा बन्दर और आधा मानुष हमको पका रहा है. !!
और झूठ-मूठ का महत्त्व पाने के प्रयास में है.)
हमने कहा : तो फिर आप क्या चाहते हैं !! आप ही बताइये !!
हनुमान जी : हम क्या चाहेंगे !!
जो भी चाहना है सब तुम्हें ही है !!
जो भी करना है तुमको ही करना है. मैं होता ही कौन हूँ !!
बस तुम्हारा नौकर भर ही तो हूँ !!
(हम समझ गये कि अब माखन लगाना ही पड़ेगा !!)
राजीव : प्रभु, एक आप ही हैं जो कि हमेँ श्रीराम जी तक ले जा सकते हैं. हम आजीवन आपके इस कृत्य के लिए आभारी रहेंगे. हम वचन देते हैं कि हम वह समस्त कार्य करेंगे जो आप कहेंगे.
हनुमानजी भी समझ गये कि अब सब कुछ ठीक है तो वह भी वातावरण को कुछ शांत करने की इच्छा से बोले : पक्का हर बात सुनोगे !!
राजीव : हाँ बिलकुल.
हनुमान जी : ह ह ह, तो फिर लाओ बुनिया. (कहकर वह जो मुस्काये हैं कि बस पूछिए मत.!!)
हमने प्रसन्न मन से कटोरे का ढक्कन खोला और चमस: (चम्मच) के साथ कटोरा उनको पकड़ा दिया.
हनुमान जी : ह ह ह, लाओ भई लाओ.
(एक चम्मच बुनिया मुंह में डालते हुए) खुद बनाते हो या फिर कौन से हलवाई से लाते हो !!
राजीव : (हम मुस्काये) ये क्यों बताएं !!
आप चाहते हैं कि हम बता दें और फिर आप सीधे वहीं से लेलें और हमारा पत्ता साफ़ !!
हनुमान जी : अच्छा तो मतलब कहीं और से ही लाते हो !!
(हनुमान जी की चतुराई और हमारी मूर्खता यहाँ पर देखने योग्य थी.!!) (हम न चाहते हुए भी बता गये कि कहीं और से लाते हैं और वह पकड भी लिए. !!)
ऐसे ही बल-बुद्धि-विद्या के दाता नहीं हैं !!
इसी पर विचार करते हुए कि कितना ही विशाल है हनुमान जी का व्यक्तित्व, हम हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

15 comments on "शायद आज मेरे जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन था. !!"

  • June 20, 2010 at 11:36 AM
    परम भक्त राजीव के सहारे शायद हमारी नैया भी पार हो जाए ?
  • June 20, 2010 at 11:36 AM
    परम भक्त राजीव के सहारे शायद हमारी नैया भी पार हो जाए ?
  • lovely kankarwal जी कहते हैं...
    June 20, 2010 at 10:01 PM
    अरे बाप रे बाप क्या लिखते हो राजीव भाई कसम से एक बार तो हमारी आँखे गीली कर गया आपका और हनुमान जी का मिलन ,,हमें तो लग रहा था जेसे हम राम भरत मिलाप का सीन देख रहे है ,,आज हमने आते ही आपको मेल किया और आज ही हमें आपका लेख पढने को मिल गया वो भी इतना सुन्दर की हम ब्यान नही कर सकते,,बहुत ही बढ़िया,,,जय सिया राम,,जय हनुमान
  • lovely kankarwal जी कहते हैं...
    June 20, 2010 at 10:05 PM
    आपका लेख पढ़कर हम और अन्य ब्लॉगर्स बार-बार तारीफ़ करना चाहेंगे पर ये वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) बीच में दीवार बन जाता है.
    आप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
    इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
    उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
    आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
    और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ "टेक टब" (Tek Tub) पर.
    यदि फ़िर भी कोई समस्या हो तो यह लेख देखें -


    वर्ड वेरिफिकेशन क्या है और कैसे हटायें ?

    आईये ये हम आपको बता देते है, हा हा हा हा हा हा हा
    नौंटकी कर रहे है e guru राजीव के साथ प्रभो
  • E-Guru Rajeev जी कहते हैं...
    June 20, 2010 at 10:10 PM
    क्या वर्ड वेरिफिकेशन लगा है !!
    एक परीक्षण !!
  • E-Guru Rajeev जी कहते हैं...
    June 20, 2010 at 10:11 PM
    हो तो गया यार !!
    हम तो समझे कि सबका हटवाते रहते हैं, खुद हमारे में ही लगा हुआ है.
    ही ही ही
    क्या लवली भाई !!
  • June 20, 2010 at 10:47 PM
    और मंदिर के बाहर...............
  • June 20, 2010 at 10:47 PM
    ई दू बार काहे क्लिक करवा रहे हो कोई भूल के आगे निकल गया तो
  • Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji जी कहते हैं...
    June 20, 2010 at 11:32 PM
    @डॉ महेश सिन्हा जी : दो बार क्लिक !! मतलब !!
  • June 20, 2010 at 11:44 PM
    कमेंट करने के बाद एक और विंडो खुल जाता है कन्फर्म करने के लिए
  • June 20, 2010 at 11:45 PM
    टेस्ट मैसेज
  • Rahul Singh जी कहते हैं...
    June 21, 2010 at 12:02 AM
    aap to ekmev jaise ho gaye jaan pad rahe hai. interesting.
  • पद्म सिंह जी कहते हैं...
    June 21, 2010 at 2:17 AM
    ऐसे ही बल-बुद्धि-विद्या के दाता नहीं हैं !!
    कितना ही विशाल है हनुमान जी का व्यक्तित्व...

    हे राम भक्त राजीव
    कैसा वर्णन किया सजीव
    तुमपर कृपा राम की होवे
    कट जावें जो संकट होवें
    ये प्रतिध्वनि ह्रदय से आई
    तुम तो भरत सदृश हो भाई
    जिस दिन काल-समय गति होगी
    तुम पर राम कृपा जब होगी
    हनुमत खुद होंगे तब सहचर
    प्रभु श्री राम मिलेंगे आकर
  • Ramkishor Dwivedi जी कहते हैं...
    June 22, 2010 at 8:00 AM
    bahut accha likhateho bhai
    mera blog
    www.ramkishordwivedi.blogspot.com
  • Himanshu Mohan जी कहते हैं...
    June 22, 2010 at 10:05 PM
    राजीव को प्रभु श्रीराम की कृपा और श्रीहनुमान का आशीष प्राप्त हो, इस शुभकामना के साथ:
    "भाई! बुनिया कहाँ से लाते हो?"


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