• आपका राजीव

  • आपका प्रेम

  • Tags Cloud

अब दोपहर तीन बजे तक उठ जाते हैं :-) पर कुछ अंधेरापन है !

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-



वैसे रामजी से मिलने को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई है पर दिनचर्या में प्रगति को हम उसी दिशा में बढ़ा एक दृढ पग मान रहे हैं परन्तु हनुमानजी...!!
उनका कोई पता ही नहीं चल रहा है !
सर्वत्र अन्धकार ही दिख रहा है.
-----------------------------------------------------------------------------------------
दिन : बुधवार, 14-7-10.
स्थान : हमारा घर.
समय : रात्रि 03:40 बजे.
व्यक्ति : एक हम बस और दूसरा कोई नहीं. एक हनुमानजी थे पर.... !!
-------------------------------------------------------------------------------------------
14-7-10
अब हम दोपहर तीन बजे तक उठ जाते हैं और यही हमारी आज की आज की बड़ी उपलब्धि है.
आज की दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
1. 3:00 बजे तक उठ जाना.
2. 3:30 बजे तक चाय पीना.
3. 4:10 बजे तक लैट्रिन जाना.
4. 4:45 बजे तक ब्रश करना.
5. 5:45 बजे तक व्यायाम करना - 5 डिप्स.
6. 6:30 बजे तक स्नान करना.
7. 7:30 बजे तक भोजन करना.
8. 11:50 बजे तक रात्रिभोज करना.
9. 3:30 बजे तक सो जाना.
वैसे सभी नौ कार्यों का समय सुधरा है पर रात्रिभोज, अब रात्रि बारह बजे के पहले संपन्न हो गया और अब इसे बनाए रखने का प्रयास रहेगा और साढ़े तीन बजे तक सो भी जाया करेंगे और आज सो भी साढ़े तीन बजे तक गये.

आगे भी है अभी........

पथ-प्रदर्शक ही भाग खड़ा हुआ !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


-----------------------------------------------------------------------------------------
दिन : मंगलवार, 13-7-10.
स्थान : हमारा घर.
समय : रात्रि 4:00 बजे.
व्यक्ति : एक हम, दूसरे हनुमानजी पर उनकी उपस्थिति छाया रूप में है !!
-------------------------------------------------------------------------------------------
13-7-10
हनुमानजी पिछले कुछ दिनों से गायब हैं और हमें हमारी दिनचर्या अकेले ही वहन करनी पड़ रही है. (!!)
आज की दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
1. 3:10 बजे तक उठ जाना.
2. 3:40 बजे तक चाय पीना.
3. 4:20 बजे तक लैट्रिन जाना.
4. 4:55 बजे तक ब्रश करना.
5. 5:55 बजे तक व्यायाम करना - 4 डिप्स.
6. 6:40 बजे तक स्नान करना.
7. 7:40 बजे तक भोजन करना.
8. 12:00 बजे तक रात्रिभोज करना.
9. 3:40 बजे तक सो जाना.
आज कुछ विशेष और नवीन समाचार नहीं है. बस प्रार्थना करिये कि हनुमानजी मिल जाएँ और फिर वह प्रभु श्रीरामजी तक ले जायें.
बड़ा लफड़ा हो गया भाई !
एक को खोज रहे थे, वह तो मिला नहीं, उलटे पथ-प्रदर्शक ही भाग खड़ा हुआ !!
अब उसी को खोजते फिर रहे हैं !!
अरे ! हनुमान जीsssss !!
कहाँ हो दीनानाथ !!
दर्शन दो महाराज !!
आप लोग भी प्रार्थना करिये........ मगर सच्चे मन से.

आगे भी है अभी........

सखी वे मुझसे कह कर जाते !

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-



हनुमानजी तो एकदम अंतर्ध्यान हो गये !
उनका कोई पता ही नहीं चला कल !
-----------------------------------------------------------------------------------------
दिन : सोमवार, 12-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : रात्रि 4:10 बजे.
व्यक्ति : बस दो (या एक) !!
-------------------------------------------------------------------------------------------
हमें नींद आ रही थी और आज भी हनुमानजी का कुछ पता नहीं चल रहा था.
क्या बात है भाई !
हनुमानजी गये कहाँ !
क्या हुआ हनुमानजी रुष्ट तो नहीं न हो गये !
अरे वही तो एकमात्र मार्ग हैं जो प्रभु श्रीराम तक हमको ले जा सकते हैं.
हनुमानजी यदि न लौटे तो रामजी तक कौन ले जाएगा !
अरे प्रभु ! यदि कोई त्रुटि हुई हो तो दण्ड दे दीजिये हमें परन्तु आइये तो सही !
इन्हीं सब चिंताओं से मन घिरा हुआ था.
हम दिनचर्या हाथ में लिए हुए थे.
हम दिनचर्या को स्वयं ही पढते हैं,
दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
१. ३:२० बजे तक उठ जाना.
२. ३:५० बजे तक चाय पीना.
३. ४:३० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०५ बजे तक ब्रश करना.
५. ६:०५ बजे तक व्यायाम करना. ३ डिप्स.
६. ६:५० बजे तक स्नान करना.
७. ७:५० बजे तक भोजन करना.
८. १२:१० बजे तक रात्रिभोज करना.
९. ३:५० बजे तक सो जाना.
और इस प्रकार से हमने नौ सुधारों के रूप में सभी कार्यों का समय सुधारा था पर हनुमानजी अभी तक नहीं आये....
अब हमें नींद आ रही है.....शुभरात्रि हनुमानजी.
कुछ लोग की चिंता में नींद उड़ जाती है, हमको तो और तेजी से लग रही है. !!
हनुमानजी भी बड़े विचित्र प्राणी हैं !
अरे जाना ही था तो बता कर जाते या नहीं आना था तो वही बताते !
आज एक कविता इस स्थिति के लिए याद पड़ रही है, संभवतः दसवीं कक्षा में पढ़ी थी...
सखी वे मुझसे कह कर जाते ,
कह तो क्या वे मुझको अपनी पग बाधा ही पाते ?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना ?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन मे लाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
स्वयं सुसज्जित कर के क्षण मे ,
प्रियतम को प्राणों के पण मे ,
हमी भेज देती है रण मे -
क्षात्र धर्म के नाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
हुआ न यह भी भाग्य अभागा ,
किस पर विफल गर्व अब जागा ?
जिसने अपनाया था, त्यागा ;
रहे स्मरण ही आते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
नयन उन्हें है निष्ठुर कहते ,
पर इनसे आंसू जो बहते ,
सदय ह्रदय वे कैसे सहते ?
गए तरस ही खाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
जाये , सिद्धि पावे वे सुख से ,
दुखी न हो इस जन के दुःख से ,
उपालम्भ दू मैं किस मुख से ?
आज अधिक वे भाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
गए लौट भी वे आवेगे ,
कुछ अपूर्व, अनुपम लावेगे ,
रोते प्राण उन्हें पावेगे,
पर क्या गाते गाते ?
सखी वे मुझसे कह कर जाते !

आगे भी है अभी........

आज हनुमानजी नहीं आये !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


कोई भी कुछ भी समझे पर हम निष्ठापूर्वक दिनचर्या को सुधार रहे हैं. हनुमानजी भी पता नहीं क्यों इस बात को नहीं समझते हैं !!
-----------------------------------------------------------------------------------------
दिन : रविवार, 11-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : रात्रि 4:20 बजे.
व्यक्ति : बस दो !!
-------------------------------------------------------------------------------------------
हमें नींद आ रही थी और अब तक हनुमानजी का कुछ पता नहीं चल रहा था.
क्या बात है भाई !
हनुमानजी गये कहाँ !
क्या हुआ हनुमानजी रुष्ट तो नहीं न हो गये !
अरे वही तो एकमात्र मार्ग हैं जो प्रभु श्रीराम तक हमको ले जा सकते हैं.
इन्हीं सब चिंताओं से मन घिरा हुआ था. हम दिनचर्या हाथ में लिए हुए थे. हम दिनचर्या को स्वयं ही पढते हैं,
दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
१. ३:३० बजे तक उठ जाना.
२. ४:०० बजे तक चाय पीना.
३. ४:४० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:१५ बजे तक ब्रश करना.
५. ६:१५ बजे तक व्यायाम करना. २ डिप्स.
६. ७:०० बजे तक स्नान करना.
७. ८:०० बजे तक भोजन करना.
८. १२:२० बजे तक रात्रिभोज करना.
९. ४:०० बजे तक सो जाना.
और इस प्रकार से हमने नौ सुधारों के रूप में सभी कार्यों में समय जोड़ा था पर हनुमानजी अभी तक नहीं आये....
अब हमें नींद आ रही है.....शुभरात्रि हनुमानजी.
कुछ लोग की चिंता में नींद उड़ जाती है, हमको तो और तेजी से लग रही है. !!

आगे भी है अभी........

चलो... अंततः, कब तक ऐसा ही करोगे !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


कल अस्वस्थ होने के कारण हनुमानजी से कोई वार्ता नहीं कर पाए, पर वो खूब बोले.
आज के आलेख में हमारे शब्द भी हैं और हनुमानजी के भी.
-----------------------------------------------------------------------------------------
दिन : शनिवार, 10-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : रात्रि 4:30 बजे.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
-------------------------------------------------------------------------------------------
अभी तक विश्वास नहीं हो रहा कि हनुमानजी कल घर आये हुए थे.
खैर, हमारी दिनचर्या एक नए सिरे से प्रारम्भ करवा के ही गये थे.
यानि कि 'साढ़े तीन बजे तक उठ जाना' वाली.
और अभी तो आज की दिनचर्या के साथ-साथ उसकी नौ विशेषताएं भी बतानी थीं क्योंकि हम नौ जुलाई को जन्मे थे.
(रामजी की कृपा है कि इकतीस को नहीं जन्मे वर्ना.....)
(हम यही सब सोच रहे थे कि सामने हनुमानजी दिखे)
राजीव : प्रणाम हनुमानजी.
हनुमानजी : ह ह ह, अभी जगे ही हो.
राजीव : अरे, आप ही की प्रतीक्षा कर रहा था. कल तो आप बोलते रहे और हम सो गये, क्या करते रोक नहीं पाए नींद को कि मत आये और आज हम सोना नहीं चाहते थे, वर्ना आप नाराज़ हो जाते.
हनुमानजी : ह ह ह, हाँ कल हम बोलते रहे फिर देखे तो तुम सो चुके थे.
यही न कलियुग है भगवान बोल रहे हैं और भक्त सो रहे हैं, ह ह ह.
(हम समझ गये कि ये अब हमको लजवा रहे हैं, अतः हमने दूसरा विषय छेड़ना ही उचित समझा)
राजीव : हाँ, दिनचर्या हमने बना ली है, दिखाएँ.
हनुमानजी : ह ह ह, दिखाओ.
राजीव : (उनकी ओर बढाते हुए) ये लीजिए....
दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
१. उठना.
२. चाय पीना.
३. लैट्रिन जाना.
४. ब्रश करना.
५. व्यायाम करना.
६. स्नान करना.
७. भोजन करना.
८. रात्रिभोज करना.
९. सो जाना.
हनुमानजी : हमको पता था कि तुम यही करोगे !!
चलो... अंततः, कब तक ऐसा ही करोगे !!
बस ये याद रखना कि ये मेरा साथ तुम्हें अंतिम बार के लिए ही मिल रहा है !!
शुभरात्रि.
(यह कह कर हनुमानजी घूमे और अदृश्य हो गये.)
(ऐसा कहते हुए उनके स्वर में घोर निराशा थी जो अब मेरे मन मस्तिष्क तक विस्तृत हो चुकी थी....)

आगे भी है अभी........

वायु वेग से चलती है, रेंगती नहीं !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


आज के आलेख में हमारा कोई भी कथन नहीं है, बस मन में उठते विचार हैं जो () कोष्ठक के रूप में हैं.
-----------------------------------------------------------------------------------------
दिन : शुक्रवार, 9-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : सायंकाल साढ़े छः.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
-------------------------------------------------------------------------------------------

हम चादर ओढ़े हुए बिस्तर पर लेटे हुए थे, कुछ उनींदे से थे दिन भर सो चुके थे पर अभी भी थकन और अस्वस्थता महसूस हो रही थी.
पूरे शरीर में भीषण दर्द की लहर उठ रही थी. दोनों पसलियों और पीठ में दर्द था. घुटने में और एड़ी में भी तीव्र दर्द था. बेहद दुर्बलता अनुभूत हो रही थी.
मंदिर जाना तो दो सप्ताह पहले ही छूट गया था और अब कभी भी दुनिया भी छूट सकती है, यही लग रहा था.
लेटे-लेटे यही सोचता हुआ समय व्यतीत कर रहा था कि तभी......
कमरे के अन्धकार में एक काया धुंधलके से प्रकट होती हुई दिखी !!
क्या वह हनुमान जी थे !!
...या मेरा भ्रम भर ही था !!
पर वह आकृति धीरे-धीरे स्पष्ट होती गयी......
हाँ, वह हनुमानजी ही थे.
हम बस उनको देखते रहे....देखते रहे...कुछ बोलने के लिए मुंह खोलना चाहा पर नहीं खुल सका.
फिर हनुमानजी ही बोले....
हनुमानजी : कैसे हो वत्स !.....
.....जन्मदिन की अट्ठाईसवीं वर्षगाँठ की शुभकामनायें.
(हम मुस्कुरा दिए)
हनुमानजी : हमने सोचा कि आज तुम उत्सव का आयोजन किये होगे...चलकर बुनिया खा आयें.
(यह सुन आँखों में कुछ अश्रु तैर आये)
(हम कुछ बोलने के लिए मुंह खोलना चाह रहे थे पर होंठ जैसे सिल से गये थे)
हनुमानजी : तुम आज कुछ भी नहीं बोल पाओगे, अतः अनुचित प्रयास मत करो. !!
पर अपनी इस स्थिति के लिए तुम स्वयं ही उत्तरदायी हो....
क्यों स्वयम् से ही शत्रुता कर रहे हो !!
हिन्दू-पुत्र होकर भी तुम पतनोन्मुख बने हुए हो !!
आखिर कब सुधरोगे !!
(मेरी आँखों में पछतावा स्पष्ट दिख रहा था)
हनुमानजी : यदि तुमने निष्ठा से स्मरण न किया होता तो हम न आये होते. !!
तुम्हारा मलिन मुख-मंडल हमसे देखते नहीं बन रहा है.
जीवन की अट्ठाईस वासंती वर्षों से क्या सीखा तुमने !!
अब तो बदलो खुद को......
आधा जीवन निकल चुका है !!
अपने जीवन में व्यक्ति को कई सारे कर्तव्य निभाने पड़ते हैं...
कुछ माता के प्रति, कुछ पिता के प्रति, कुछ पुत्र के प्रति, कुछ संतान के प्रति, कुछ राष्ट्र के प्रति...
पर तुमने अपने जीवन में कोई कर्तव्य कभी भी नहीं निभाया !!
(ये बात हमें चुभ गयी...पर थी तो सत्य ही)
अच्छा मान लो कि तुम्हारे पास मात्र एक ही वर्ष है तो तुम अपने राष्ट्र के लिए क्या कर सकते हो !!
(हमने मुंह हिलाने का प्रयास किया पर सब व्यर्थ रहा)
तुम बोलो मत, बस विचार करो...
(मैं सोचने लगा....पर कुछ सूझ नहीं रहा था !! राष्ट्र-भक्ति तो कूट-कूट कर भरी थी, आखिर आर.एस.एस. की शाखा से जो जुड़ा रहा हूँ, पर क्या करूँ, कैसे करूँ यह कभी सोच-समझ नहीं पाया !! हमेशा बस यही निष्कर्ष निकाला कि अपना कार्य ईमानदारी और निष्ठा से करना ही राष्ट्र-सेवा है)
हनुमानजी : सोचो..सोचो...
अच्छा अगर मैं तुम्हें एक वचन दूं कि प्रभु तक ले चलूँगा तो तुम बदले में एक वर्ष में भारतमाता को क्या दे सकते हो ??
अपने अगले जन्मदिन तक क्या दे सकते हो ?
(मेरी आँखें चमक उठीं थीं यह सुनकर पर....!!)
अरे यार ! तुम नौ जुलाई को जन्मे हो तुमको तो नौ गुने वेग से प्रगति करनी चाहिये पर तुम तो मूर्छितावस्था में पड़े रहते हो !!
क्या तुमको नहीं लगता कि तुम्हें नौ गुने वेग से आगे बढ़ना चाहिये !!
.....अपने राष्ट्र के लिए !!!!
(हम मुस्कुराए, हम समझ रहे थे कि हनुमानजी हमको कहाँ और क्यों टहला रहे थे !!)
हनुमानजी भी समझ गये कि हमने बात पकड ली है तो वे खुल कर बोले : देखो, अब बहुत समय हो गया है, अब तुम्हें तीव्रगति से आगे बढ़ना चाहिये. तुम्हारी मंद गति के कारण ही आज तुम इस दशा में शय्या पर पड़े हुए हो.
वायु वेग से चलती है, रेंगती नहीं !!
अब तुम्हें वह वेग दिखाना ही होगा.
(यह कहते हुए उनका मुख-मंडल कठोर होता जा रहा था)
तुम मंदिर नहीं आ सके इसलिए हम स्वयम् ही आ गये हैं, पर यह तुम्हें मेरी ओर से मिल रही अंतिम सहायता है, अब भी अगर तुम न उठे यानी प्रगति नहीं करोगे तो मेरा साथ भी खो दोगे !!
(हम शांत थे न उग्रता, न दुःख और न ही कोई और भाव !! बस मस्तिष्क सांय-सांय कर रहा था, ...और ऐसा लग रहा था कि जैसे हनुमान जी भी बोर कर रहे हों !! शायद थक गये थे सुनते-सुनते !!
पर हमारे प्रभु आज बोलने के मूड में थे !!)
हनुमानजी : चलो जो बीत गया, वह बात गयी, अब एक नवीन सवेरा हो. तुम आज से पुनः अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करो.
तो फिर आज कितने बजे उठे थे !!
(हम मौन थे, बस आँखें ही चला रहे थे)
चलो ठीक है मान लेते हैं कि साढ़े तीन बजे. !!
ठीक रहेगा. !!
(हमने पलकें झपका कर हाँ का संकेत दिया और मुस्कुरा भी दिए. हम चाह रहे थे कि बात समाप्त हो और हम सो जाएँ!!)
पर तुम्हें कल अपनी दिनचर्या की नौ विशेषताएं भी बतानी होंगी !!
(हम चौंके !! ये क्या है !!)
हनुमानजी : नौ गुना वेग कैसे आएगा !!
आगे वे क्या बोले पता नहीं क्योंकि हम सो गये थे !!

आगे भी है अभी........

एक विचित्र परिवर्तन !

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

छब्बीस जून तक सब कुछ सही चल रहा था और हम नियमित रूप से मंदिर जा रहे थे.
यही लग रहा था कि कुछ दिनों तक मंदिर आयेंगे फिर एक दिन जब सब सुधार संपन्न हो जायेंगे तो हनुमानजी प्रभु श्रीराम जी तक ले जायेंगे.पर....
हम अस्वस्थ हो गये और शय्या पर पड़ गये. हमको लगने लगा कि अब तो बस मर ही जायेंगे और राम जी से मिलना तो रह ही जाएगा. अब क्या किया जाय !!
यही सोच-सोच कर मन व्याकुल हुआ जा रहा था.
फिर कुछ ऐसा घटा जो कि अचम्भे में डालने वाला था !!
हमने अपने जीवन में ऐसा नहीं सोचा था !!

अब आगे पढ़ें कि क्या हुआ.....

आगे भी है अभी........

अब पुनः दस बजे जागने लगे हैं. ;-P

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


दिन : शुक्रवार, 26-6-10
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
-------------------------------------------------------------------------------------------
आज का दिन जोश से भरा हुआ था. सीधी सी बात है कि कल सब गडबड कर दिए थे तो आज तो सुधार दिखने ही थे. ;-P
आज हनुमानजी को एक दोना बुनिया लाकर दिए. सब कुछ प्रसन्नतापूर्वक बीत गया.
हमने अपनी आज की दिनचर्या उनको प्रस्तुत की, जो इस प्रकार से थी :-
1. सुबह 10:00 बजे तक उठ जाना.
2. 12:50 बजे तक ब्रश करना.
3. 1:25 बजे तक चाय पीना.
4. 2:20 बजे तक स्नान करना.
5. 2:50 बजे तक भोजन करना.
6. 12:10 बजे तक व्यायाम करना. -१६, ५ डिप्स.
7. 12:40 बजे तक रात्रि-भोज करना.
8. रात्रि 2:00 बजे तक सो जाना.
हनुमानजी संतुष्ट दिखे.
पर हम कब प्रभु से मिलने जायेंगे यही विचार करते हुए हम शांतिपूर्वक हनुमान जी के सामने से उठे......
.
.
.
.
.
.
.घूमे.
.
.
.
.
और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........

हनुमानजी पिता होते तो क्या ऐसे ही होते !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


दिन : शुक्रवार, 25-6-30
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
-------------------------------------------------------------------------------------------
एक नयी सुबह एक नया सूरज लाती है.....पर यहाँ पर एक सितारा टूटा था !!
हमारी समय-सारिणी आज प्रथम बार विपरीत मार्ग पर चल पड़ी थी. यह नकारात्मकता को द्योतित कर रही थी पर सत्य यही था.
हम मलिन मुख लिये हुए बजरंग बली के सम्मुख थे.
बस घंटी बजाई और बजरंग बली को देखा और उनहोंने तो मानो देखते ही जैसे समझ लिया कि बच्चा आज कुछ गडबडी करके आया है !!
हनुमानजी : क्या हुआ, ह ह ह, ऐसा लग रहा है कि तुम्हारी गाडी को किसी ने ठोंक दिया हो !!
(हमारा चेहरा और रोआंसा हो गया, हमने बिना कुछ कहे अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ा दी.)
राजीव : ये लीजिए....
हनुमानजी भी बिना कुछ बोले ले लिये और पढ़ने लगे....
हनुमानजी : हूँsssss
१. सुबह १०:२० बजे तक उठ जाना.
२. १:०० बजे तक ब्रश करना.
३. १:३५ बजे तक चाय पीना.
४. २:३० बजे तक स्नान करना.
५. ३:०० बजे तक भोजन करना.
६. १२:२० बजे तक व्यायाम करना. -१६, ४ डिप्स.
७. १२:५० बजे तक रात्रि-भोज करना.
८. रात्रि २:०५ बजे तक सो जाना.

............(एक मौन सा छा गया कुछ पलों के लिये फिर जोर से हंसी सुनाई पड़ी हनुमानजी की)
ह ह ह तुममें वीरवर लक्ष्मण जी के दर्शन हो रहे हैं !!
जब वे मूर्छित हो गये थे तो उनका चेहरा भी बिलकुल तुम्हारी ही तरह मलिन पड़ गया था. ह ह ह
ऐसा भी क्या हुआ जो इतने दुखी हो !!
हो ही जाता है कभी-कभी अहिरावण से लड़ना पड़ा हो या मेरी ही पूंछ में आग लगी रही हो या समुद्र-पार जाते हुए सुरसा मुझे निगल गयी थी, इतनी सारे विषयों के उपरांत भी मैं कभी नहीं हारा !!
सुरसा के मुंह में जाना पड़ा.....वह तो विधाता का लिखा हुआ था. !!
पर अपने पुरुषार्थ से मैं लड़ा और जीता.
मेरी पूंछ में आग लगे यह भी भाग्यानुसार ही हुआ था.....और लंका का राख में परिवर्तित हो जाना भी परमेश्वर ने ही निर्धारित किया हुआ था.
आपका देर से उठना इस कारण से हुआ क्योंकि आप एक अलार्म घड़ी नहीं रखे हुए हैं !!
सुबह उठने के लिये एक अलार्म घड़ी रखिये ताकि आप दिनचर्या सुधार पायें !
उचित समय पर अलार्म लगाइए और फिर प्रतिदिन इसमें सुधार करते रहें सब ठीक हो जाएगा, इसमें दुखी होने जैसा कुछ भी नहीं है. देखियेगा २४ घण्टे में स्थिति बदल जायेगी.
यह कहकर हनुमानजी ने हमारी पीठ थपथपाई (और यह पहली बार हुआ था !!!!) और कहा कि अब जाओ शयन करो रात बहुत हो चुकी है. आदित्य की रश्मियाँ तुम्हारा जीवन आलोकित करें.
(यह सुनकर मन अति प्रसन्न हो गया . ऐसा लगा कि हनुमानजी ही विधाता हैं और उन्होंने सूर्य की किरणों को मेरी सेवा, मेरी प्रगति में संलग्न कर दिया है.)
(हम बस उनको शांतिपूर्वक सुनते रहे...संभवतः हमेँ सांत्वना और प्रोत्साहन की ही आवश्यकता थी जो आज हनुमानजी से हमेँ प्राप्त हो रहा था.)
हनुमानजी पिता होते तो क्या ऐसे ही होते !! यही विचार करते हुए हम शांतिपूर्वक हनुमान जी के सामने से उठे......
.
.
.
.
.
.
.घूमे.
.
.
.
.
और मंदिर के बाहर................

आगे भी है अभी........