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हनुमानजी पिता होते तो क्या ऐसे ही होते !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-


दिन : शुक्रवार, 25-6-30
स्थान : हनुमान मन्दिर
समय : रात्रि के साढ़े ग्यारह
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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एक नयी सुबह एक नया सूरज लाती है.....पर यहाँ पर एक सितारा टूटा था !!
हमारी समय-सारिणी आज प्रथम बार विपरीत मार्ग पर चल पड़ी थी. यह नकारात्मकता को द्योतित कर रही थी पर सत्य यही था.
हम मलिन मुख लिये हुए बजरंग बली के सम्मुख थे.
बस घंटी बजाई और बजरंग बली को देखा और उनहोंने तो मानो देखते ही जैसे समझ लिया कि बच्चा आज कुछ गडबडी करके आया है !!
हनुमानजी : क्या हुआ, ह ह ह, ऐसा लग रहा है कि तुम्हारी गाडी को किसी ने ठोंक दिया हो !!
(हमारा चेहरा और रोआंसा हो गया, हमने बिना कुछ कहे अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ा दी.)
राजीव : ये लीजिए....
हनुमानजी भी बिना कुछ बोले ले लिये और पढ़ने लगे....
हनुमानजी : हूँsssss
१. सुबह १०:२० बजे तक उठ जाना.
२. १:०० बजे तक ब्रश करना.
३. १:३५ बजे तक चाय पीना.
४. २:३० बजे तक स्नान करना.
५. ३:०० बजे तक भोजन करना.
६. १२:२० बजे तक व्यायाम करना. -१६, ४ डिप्स.
७. १२:५० बजे तक रात्रि-भोज करना.
८. रात्रि २:०५ बजे तक सो जाना.

............(एक मौन सा छा गया कुछ पलों के लिये फिर जोर से हंसी सुनाई पड़ी हनुमानजी की)
ह ह ह तुममें वीरवर लक्ष्मण जी के दर्शन हो रहे हैं !!
जब वे मूर्छित हो गये थे तो उनका चेहरा भी बिलकुल तुम्हारी ही तरह मलिन पड़ गया था. ह ह ह
ऐसा भी क्या हुआ जो इतने दुखी हो !!
हो ही जाता है कभी-कभी अहिरावण से लड़ना पड़ा हो या मेरी ही पूंछ में आग लगी रही हो या समुद्र-पार जाते हुए सुरसा मुझे निगल गयी थी, इतनी सारे विषयों के उपरांत भी मैं कभी नहीं हारा !!
सुरसा के मुंह में जाना पड़ा.....वह तो विधाता का लिखा हुआ था. !!
पर अपने पुरुषार्थ से मैं लड़ा और जीता.
मेरी पूंछ में आग लगे यह भी भाग्यानुसार ही हुआ था.....और लंका का राख में परिवर्तित हो जाना भी परमेश्वर ने ही निर्धारित किया हुआ था.
आपका देर से उठना इस कारण से हुआ क्योंकि आप एक अलार्म घड़ी नहीं रखे हुए हैं !!
सुबह उठने के लिये एक अलार्म घड़ी रखिये ताकि आप दिनचर्या सुधार पायें !
उचित समय पर अलार्म लगाइए और फिर प्रतिदिन इसमें सुधार करते रहें सब ठीक हो जाएगा, इसमें दुखी होने जैसा कुछ भी नहीं है. देखियेगा २४ घण्टे में स्थिति बदल जायेगी.
यह कहकर हनुमानजी ने हमारी पीठ थपथपाई (और यह पहली बार हुआ था !!!!) और कहा कि अब जाओ शयन करो रात बहुत हो चुकी है. आदित्य की रश्मियाँ तुम्हारा जीवन आलोकित करें.
(यह सुनकर मन अति प्रसन्न हो गया . ऐसा लगा कि हनुमानजी ही विधाता हैं और उन्होंने सूर्य की किरणों को मेरी सेवा, मेरी प्रगति में संलग्न कर दिया है.)
(हम बस उनको शांतिपूर्वक सुनते रहे...संभवतः हमेँ सांत्वना और प्रोत्साहन की ही आवश्यकता थी जो आज हनुमानजी से हमेँ प्राप्त हो रहा था.)
हनुमानजी पिता होते तो क्या ऐसे ही होते !! यही विचार करते हुए हम शांतिपूर्वक हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

4 comments on "हनुमानजी पिता होते तो क्या ऐसे ही होते !!"

  • पद्म सिंह जी कहते हैं...
    July 3, 2010 at 6:16 AM
    आत्मबल ही सब से बड़ा बल है ... हनुमान जी भी वही बल जगाना चाहते हैं ... हनुमान जी को भी समुद्र पार करने के लिए आत्मबल जगाने की आवश्यकता पड़ी थी ... मन के हारे हार है मन के जीते जीत ... निर्णय लेने की क्षमता भी आत्मबल से ही आती है ... शुभकामनाएँ
  • Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji जी कहते हैं...
    July 3, 2010 at 10:43 AM
    कभी-कभी मन में ख़याल आता है कि कहीं इस ब्लॉग के जरिये मैं स्वयं को धोखा तो नहीं न दे रहा हूँ.
    यानि कि हनुमान भी मैं और राजीव भी मैं !!
    फिर मन से उत्तर मिला कि नहीं हम अपनी प्रगति का मापन, सुधार, परिवर्तन, परिवर्धन सत्यता से कर रहे हैं. :-)
    सही बात है आत्मबल आवश्यक चीज है.
  • Krishna जी कहते हैं...
    July 4, 2010 at 8:51 AM
    nice aricle Rajeev
  • lovely kankarwal जी कहते हैं...
    July 4, 2010 at 11:13 PM
    बहुत बढ़िया,,, सही कहा गया है,,,समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी कुछ नही मिलेगा. और मनुष्य का परम कर्तव्य है कर्म. कर्म करो फल की इच्छा ना करो ,अगर कर्म में दम होगा तो वो [ प्रभु श्री राम ] फल देने जरुर आएँगे,,,,,, धन्यवाद


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