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रविवासरीय बजरंगी डांट - समय हेतु. !!

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-

रविवार का दिन सबके लिए अवकाश का ही होता है पर हम रात्रि के ग्यारह बजे पुनः हनुमान जी के मंदिर पहुँचे, यह हमारा स्व-सुधार का दूसरा दिन था.
एक सूचना जो इस ब्लॉग पर नए हैं उनके लिए
(दरअसल हमेँ अपने प्रभु श्रीराम जी से मिलना था और हमारे पास उनका पता नहीं था तो हम लखनऊ यूनिवर्सिटी के सामने वाले हनुमान मंदिर में हनुमान जी से मिलने और रामजी का पता पूछने पहुँचे. अब हनुमान जी राम जी और हमारी दिनचर्या पत्री को मिला कर एक कर रहे हैं ताकि जब हम राम जी से मिलने पहुँचे तो कोई असुविधा न हो.)
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हम अपने शनिवार के कार्यों को एक दिनचर्या का रूप देकर हनुमानजी जी के सम्मुख पहुँचे.
गर्मी बड़ी थी, हम पसीना पोंछते हुए तेजी से मंदिर का घंटा टनटनाये. (यह हमारे आगमन की सूचना थी :-) हमारे घंटी बजाने की शैली ही कुछ ऐसी है कि हनुमानजी समझ जाते हैं कि कौन आया है.)
आज जल्दी में हम बुनिया भी भूल गये थे. हम पर नियमित होने का अधिक दबाव था, हम किसी भी कीमत पर इस सुधार की प्रक्रिया को भंग नहीं होने दे सकते थे.
दोनों हाथ जोड़ कर हम बोले : जय बजरंग बली. !!
बजरंग बली कहीं व्यस्त थे, कुछ जोड़ घटा रहे थे !!
पता नहीं.....
कुछ रहा होगा, हमने पूछना उचित नहीं समझा. !!
मुझे देखते ही अपनी पोथी बंद करते हुए बोले : ह ह ह, आओ भाई..आओ. क्या हुआ आज बुनिया नहीं लाये हो !! ह ह ह
राजीव : ना...जल्दी में छूट गया. :-)
हनुमानजी : चलो कोई बात नहीं, अधिक मिष्टान्न भी हानिप्रद है....और तुम्हारा आना अतिआवश्यक था.
राजीव : जी.
हनुमानजी : तो अपनी दिनचर्या आप लाये हैं !!
राजीव : जी... हाँ, ये रही (ये कहते हुए हमने अपनी दिनचर्या उनकी ओर बढ़ाई)
हनुमानजी कुछ चिन्तित और शोचनीय मुद्रा बनाते हुए दिनचर्या को देखते हैं. हम समझ गये कि कुछ न कुछ गडबड तो जरूर ही है. कुछ का अंदाजा तो हमेँ था भी पर उनके मन में क्या था यह समझना कठिन था. !!
वे हमारी दिनचर्या पढ़ने लगे.
हनुमानजी :
१. सुबह उठना.
२. लैट्रिन जाना.
३. ब्रश करना.
४. चाय पीना.
५. स्नान करना.
६. भोजन करना.
७. व्यायाम करना. -१६ डिप्स.
८. रात्रि-भोज करना.
इसमें अच्छा क्या है !!
ऐसा क्या है जिसे तुम सुधार कहते हो !!
राजीव : (कुछ सोचकर अत्यंत दृढ़ता के साथ हमने उत्तर दिया) क्रमबद्धता. !!
हनुमानजी : और....!!! और क्या है !!
राजीव : बस ....!! और... !! और आप बताइये कि आप कहना क्या चाह रहे हैं, मैं समझा नहीं !!
(उनकी मुख-मुद्रा से पूर्णतया स्पष्ट था कि उनका पाला एक मूर्ख से पड़ा था. !!)
हनुमानजी : (झल्लाते हुए) इसमें समय कहाँ है !!!
राजीव : अरे ! हमारे समक्ष तो क्रमबद्धता को बनाए रखने का दबाव था !!
शय्या-चय्या (बेड-टी) से मुक्त है यह दिनचर्या.
और व्यायाम भी किया है एक सेट १६ डिप्स !!
दो बार भोजन भी किया है, यही क्या कम है !!
हनुमानजी : वाह बन्धु...वाह !! मतलब कि दो बार भोजन करके आपने हम पर अहसान कर दिया है जी !!!!
चरण कहाँ हैं आपके !!
राजीव : नहीं हमारा वो मतलब नहीं था, हम तो बस...(हनुमानजी ने हमारी बात काटी)
हनुमानजी : बस....हो गया !!
जो बोलना था आप बोल चुके !!
पूरा मजाक बना रखा है आपने !!
समय-सारिणी का मतलब क्या रहा, अगर उसमें समय न हो !!
राजीव : जी.... (अब हमने चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा)
हनुमानजी : अब जाइए और कल आपकी दिनचर्या में समय होना ही चाहिये.
राजीव : जी...ठीक है.
यह कहकर हम हनुमान जी के सामने से उठे......
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.घूमे.
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और मंदिर के बाहर................

6 comments on "रविवासरीय बजरंगी डांट - समय हेतु. !!"

  • E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi जी कहते हैं...
    June 21, 2010 at 5:05 AM
    टिप्पणी परीक्षण !!
  • Smart AKD जी कहते हैं...
    June 21, 2010 at 5:10 AM
    शय्या-चय्या = बेड-टी
    हा हा हा
    ज्ञानवर्धक !!
    समय-सारिणी में समय तो रहना ही चाहिए.
  • monish ammaar 19dsatak जी कहते हैं...
    June 21, 2010 at 5:21 AM
    hanumaanji aapko aapka ichchht var pradaan karen.
    shubhkaamnayen.
    :-)
  • monish ammaar 19dsatak जी कहते हैं...
    June 21, 2010 at 5:23 AM
    वैसे आपकी बात आवश्यक है क्रमबद्धता समय की अपेक्षा अधिक आवश्यक है. हम ही आपकी तरह क्रमबद्ध नहीं हो पा रहे हैं.
    पर आप अपना सुधार कार्य जरी रखें रामजी कैसे नहीं मिलेंगे !!
  • lovely kankarwal जी कहते हैं...
    June 21, 2010 at 5:40 AM
    राजीव जी नस्कार ,,,,,,,
    मैं यंहा पर दो बातों का उलेख करना चाहता हूँ पता नही अच्छी है या गलत ये तो आप जेसे बुद्धजीवी ही बताएँगे,,,,
    १ यह की आप इतने लायक बनो की आप खुद भगवान् तक का रास्ता तय करे ,जो की बहुत मुश्किल है,
    २ दूसरा यह की इतने नालायक बनो की आपको सुधारने के लिए खुद भगवान् जी को अवतार लेना पढ़े,,
    इन दोनों रास्तो पर आपको राम जी के दर्शन होंगे. किस रूप में मिलेंगे ये उनकी मर्जी ,भईया ये मैं केसे बता सकता हूँ
  • Himanshu Mohan जी कहते हैं...
    June 22, 2010 at 9:57 PM
    जारी रहिए। बहुत रोचक श्रृंखला चल रही है - मज़ाक-मज़ाक में शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक। वाह!


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