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वायु वेग से चलती है, रेंगती नहीं !!

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आज के आलेख में हमारा कोई भी कथन नहीं है, बस मन में उठते विचार हैं जो () कोष्ठक के रूप में हैं.
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दिन : शुक्रवार, 9-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : सायंकाल साढ़े छः.
व्यक्ति : बस दो (एक प्रभु हनुमानजी और दूसरा उनका भक्त राजीव)
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हम चादर ओढ़े हुए बिस्तर पर लेटे हुए थे, कुछ उनींदे से थे दिन भर सो चुके थे पर अभी भी थकन और अस्वस्थता महसूस हो रही थी.
पूरे शरीर में भीषण दर्द की लहर उठ रही थी. दोनों पसलियों और पीठ में दर्द था. घुटने में और एड़ी में भी तीव्र दर्द था. बेहद दुर्बलता अनुभूत हो रही थी.
मंदिर जाना तो दो सप्ताह पहले ही छूट गया था और अब कभी भी दुनिया भी छूट सकती है, यही लग रहा था.
लेटे-लेटे यही सोचता हुआ समय व्यतीत कर रहा था कि तभी......
कमरे के अन्धकार में एक काया धुंधलके से प्रकट होती हुई दिखी !!
क्या वह हनुमान जी थे !!
...या मेरा भ्रम भर ही था !!
पर वह आकृति धीरे-धीरे स्पष्ट होती गयी......
हाँ, वह हनुमानजी ही थे.
हम बस उनको देखते रहे....देखते रहे...कुछ बोलने के लिए मुंह खोलना चाहा पर नहीं खुल सका.
फिर हनुमानजी ही बोले....
हनुमानजी : कैसे हो वत्स !.....
.....जन्मदिन की अट्ठाईसवीं वर्षगाँठ की शुभकामनायें.
(हम मुस्कुरा दिए)
हनुमानजी : हमने सोचा कि आज तुम उत्सव का आयोजन किये होगे...चलकर बुनिया खा आयें.
(यह सुन आँखों में कुछ अश्रु तैर आये)
(हम कुछ बोलने के लिए मुंह खोलना चाह रहे थे पर होंठ जैसे सिल से गये थे)
हनुमानजी : तुम आज कुछ भी नहीं बोल पाओगे, अतः अनुचित प्रयास मत करो. !!
पर अपनी इस स्थिति के लिए तुम स्वयं ही उत्तरदायी हो....
क्यों स्वयम् से ही शत्रुता कर रहे हो !!
हिन्दू-पुत्र होकर भी तुम पतनोन्मुख बने हुए हो !!
आखिर कब सुधरोगे !!
(मेरी आँखों में पछतावा स्पष्ट दिख रहा था)
हनुमानजी : यदि तुमने निष्ठा से स्मरण न किया होता तो हम न आये होते. !!
तुम्हारा मलिन मुख-मंडल हमसे देखते नहीं बन रहा है.
जीवन की अट्ठाईस वासंती वर्षों से क्या सीखा तुमने !!
अब तो बदलो खुद को......
आधा जीवन निकल चुका है !!
अपने जीवन में व्यक्ति को कई सारे कर्तव्य निभाने पड़ते हैं...
कुछ माता के प्रति, कुछ पिता के प्रति, कुछ पुत्र के प्रति, कुछ संतान के प्रति, कुछ राष्ट्र के प्रति...
पर तुमने अपने जीवन में कोई कर्तव्य कभी भी नहीं निभाया !!
(ये बात हमें चुभ गयी...पर थी तो सत्य ही)
अच्छा मान लो कि तुम्हारे पास मात्र एक ही वर्ष है तो तुम अपने राष्ट्र के लिए क्या कर सकते हो !!
(हमने मुंह हिलाने का प्रयास किया पर सब व्यर्थ रहा)
तुम बोलो मत, बस विचार करो...
(मैं सोचने लगा....पर कुछ सूझ नहीं रहा था !! राष्ट्र-भक्ति तो कूट-कूट कर भरी थी, आखिर आर.एस.एस. की शाखा से जो जुड़ा रहा हूँ, पर क्या करूँ, कैसे करूँ यह कभी सोच-समझ नहीं पाया !! हमेशा बस यही निष्कर्ष निकाला कि अपना कार्य ईमानदारी और निष्ठा से करना ही राष्ट्र-सेवा है)
हनुमानजी : सोचो..सोचो...
अच्छा अगर मैं तुम्हें एक वचन दूं कि प्रभु तक ले चलूँगा तो तुम बदले में एक वर्ष में भारतमाता को क्या दे सकते हो ??
अपने अगले जन्मदिन तक क्या दे सकते हो ?
(मेरी आँखें चमक उठीं थीं यह सुनकर पर....!!)
अरे यार ! तुम नौ जुलाई को जन्मे हो तुमको तो नौ गुने वेग से प्रगति करनी चाहिये पर तुम तो मूर्छितावस्था में पड़े रहते हो !!
क्या तुमको नहीं लगता कि तुम्हें नौ गुने वेग से आगे बढ़ना चाहिये !!
.....अपने राष्ट्र के लिए !!!!
(हम मुस्कुराए, हम समझ रहे थे कि हनुमानजी हमको कहाँ और क्यों टहला रहे थे !!)
हनुमानजी भी समझ गये कि हमने बात पकड ली है तो वे खुल कर बोले : देखो, अब बहुत समय हो गया है, अब तुम्हें तीव्रगति से आगे बढ़ना चाहिये. तुम्हारी मंद गति के कारण ही आज तुम इस दशा में शय्या पर पड़े हुए हो.
वायु वेग से चलती है, रेंगती नहीं !!
अब तुम्हें वह वेग दिखाना ही होगा.
(यह कहते हुए उनका मुख-मंडल कठोर होता जा रहा था)
तुम मंदिर नहीं आ सके इसलिए हम स्वयम् ही आ गये हैं, पर यह तुम्हें मेरी ओर से मिल रही अंतिम सहायता है, अब भी अगर तुम न उठे यानी प्रगति नहीं करोगे तो मेरा साथ भी खो दोगे !!
(हम शांत थे न उग्रता, न दुःख और न ही कोई और भाव !! बस मस्तिष्क सांय-सांय कर रहा था, ...और ऐसा लग रहा था कि जैसे हनुमान जी भी बोर कर रहे हों !! शायद थक गये थे सुनते-सुनते !!
पर हमारे प्रभु आज बोलने के मूड में थे !!)
हनुमानजी : चलो जो बीत गया, वह बात गयी, अब एक नवीन सवेरा हो. तुम आज से पुनः अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करो.
तो फिर आज कितने बजे उठे थे !!
(हम मौन थे, बस आँखें ही चला रहे थे)
चलो ठीक है मान लेते हैं कि साढ़े तीन बजे. !!
ठीक रहेगा. !!
(हमने पलकें झपका कर हाँ का संकेत दिया और मुस्कुरा भी दिए. हम चाह रहे थे कि बात समाप्त हो और हम सो जाएँ!!)
पर तुम्हें कल अपनी दिनचर्या की नौ विशेषताएं भी बतानी होंगी !!
(हम चौंके !! ये क्या है !!)
हनुमानजी : नौ गुना वेग कैसे आएगा !!
आगे वे क्या बोले पता नहीं क्योंकि हम सो गये थे !!

1 comments on "वायु वेग से चलती है, रेंगती नहीं !!"

  • lovely kankarwal जी कहते हैं...
    July 23, 2010 at 4:46 AM
    अरे बाप रे बाप ,,,,,,,,,,, पहले तो आपके जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनाये, मैं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ की इस नये साल में आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो,आप पूरा साल पूरी गिन्दगी हमेशा ऐसे ही चाँद सितारों की तरह चमकते रहे और आपकी उम्र भी उनके जितनी लम्बी हो,,,,,और इस लेख को पढ़ते पढ़ते हमारा क्या हाल हुआ हम ब्यान नही कर सकते,, बस प्रभु श्री राम से आपके लिए दुआ मांग रहे है की फिर कभी आपकी जिन्दगी में दोवारा कष्ट ना आये ,,,,,, बस इतना ही ,,,,,


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