• आपका राजीव

  • आपका प्रेम

  • Tags Cloud

सखी वे मुझसे कह कर जाते !

ऐसे लेख इस श्रेणी में हैं-



हनुमानजी तो एकदम अंतर्ध्यान हो गये !
उनका कोई पता ही नहीं चला कल !
-----------------------------------------------------------------------------------------
दिन : सोमवार, 12-7-10.
स्थान : हमारा मन्दिर मतलब घर.
समय : रात्रि 4:10 बजे.
व्यक्ति : बस दो (या एक) !!
-------------------------------------------------------------------------------------------
हमें नींद आ रही थी और आज भी हनुमानजी का कुछ पता नहीं चल रहा था.
क्या बात है भाई !
हनुमानजी गये कहाँ !
क्या हुआ हनुमानजी रुष्ट तो नहीं न हो गये !
अरे वही तो एकमात्र मार्ग हैं जो प्रभु श्रीराम तक हमको ले जा सकते हैं.
हनुमानजी यदि न लौटे तो रामजी तक कौन ले जाएगा !
अरे प्रभु ! यदि कोई त्रुटि हुई हो तो दण्ड दे दीजिये हमें परन्तु आइये तो सही !
इन्हीं सब चिंताओं से मन घिरा हुआ था.
हम दिनचर्या हाथ में लिए हुए थे.
हम दिनचर्या को स्वयं ही पढते हैं,
दिनचर्या कुछ इस तरह से थी :
१. ३:२० बजे तक उठ जाना.
२. ३:५० बजे तक चाय पीना.
३. ४:३० बजे तक लैट्रिन जाना.
४. ५:०५ बजे तक ब्रश करना.
५. ६:०५ बजे तक व्यायाम करना. ३ डिप्स.
६. ६:५० बजे तक स्नान करना.
७. ७:५० बजे तक भोजन करना.
८. १२:१० बजे तक रात्रिभोज करना.
९. ३:५० बजे तक सो जाना.
और इस प्रकार से हमने नौ सुधारों के रूप में सभी कार्यों का समय सुधारा था पर हनुमानजी अभी तक नहीं आये....
अब हमें नींद आ रही है.....शुभरात्रि हनुमानजी.
कुछ लोग की चिंता में नींद उड़ जाती है, हमको तो और तेजी से लग रही है. !!
हनुमानजी भी बड़े विचित्र प्राणी हैं !
अरे जाना ही था तो बता कर जाते या नहीं आना था तो वही बताते !
आज एक कविता इस स्थिति के लिए याद पड़ रही है, संभवतः दसवीं कक्षा में पढ़ी थी...
सखी वे मुझसे कह कर जाते ,
कह तो क्या वे मुझको अपनी पग बाधा ही पाते ?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना ?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन मे लाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
स्वयं सुसज्जित कर के क्षण मे ,
प्रियतम को प्राणों के पण मे ,
हमी भेज देती है रण मे -
क्षात्र धर्म के नाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
हुआ न यह भी भाग्य अभागा ,
किस पर विफल गर्व अब जागा ?
जिसने अपनाया था, त्यागा ;
रहे स्मरण ही आते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
नयन उन्हें है निष्ठुर कहते ,
पर इनसे आंसू जो बहते ,
सदय ह्रदय वे कैसे सहते ?
गए तरस ही खाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
जाये , सिद्धि पावे वे सुख से ,
दुखी न हो इस जन के दुःख से ,
उपालम्भ दू मैं किस मुख से ?
आज अधिक वे भाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
गए लौट भी वे आवेगे ,
कुछ अपूर्व, अनुपम लावेगे ,
रोते प्राण उन्हें पावेगे,
पर क्या गाते गाते ?
सखी वे मुझसे कह कर जाते !

2 comments on "सखी वे मुझसे कह कर जाते !"

  • nilesh mathur जी कहते हैं...
    July 24, 2010 at 2:59 AM
    सखी वे मुझसे कह कर जाते !
    बहुत सुन्दर!
  • lovely kankarwal जी कहते हैं...
    July 27, 2010 at 10:45 PM
    बहुत सुन्दर ,,,, लगता है आज राजीव जी के अन्दर सोया हुआ क़वी जाग गया है,,,, अतिसुन्दर,,,


नीचे दिया गया बक्सा हिंदी लिखने के लिए प्रयोग करें.

Post a Comment